ब्रह्मसूत्रम | Brahmasutra

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Brahmasutra  by यतिचर श्री भोलेबाबा - Yatichar Sri Bholebaba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। . भरापि० ४ स० १३) शाह्रमाष्य-रत्नप्रभा-भापानुवादसहित ५८९ श्न््ख््क्ख्यश्््श्ऊरलश्र्>ः>... ० «० | ४ -+न्‍ा ू + ूौ + ४ +-+ ्््ञ्ज््ज्नज््ल्य्ण्स्ख्छ््क्ट साष्य तथाभूतमपि वस्तु कम -भवति, मनोस्थकल्पितस्याउप्यमिध्यायतिकर्म- 5 दे + लवात1 ईक्षतेस्तु : तथाभूतमेव' वस्तु लोके कमें दृष्टमित्यतः परमात्मेवाय सम्यग्दशनविषयभूत ईक्षतिकर्मत्वेन व्यपदि्ट इति गस्यते । स एवं चेह प्रपुरुपशब्दाभ्यामभिध्यातव्यः प्रत्यमिज्ञायते-1 पल, : नन्वभिंध्याने परः पुरुष उक्त), ईशक्षणे तु परात्पर।, कथमिवर इतरजत्र प्रत्यभिज्ञायत इति । अन्रोच्यते परपृरुपश्ब्दी ताबढुभयत्र ाधारणी। न (आष्यका , अनुवाद... रह डॉ अतथासूत--कल्पित वस्तु भी ध्यानविष्य होती है, क्योंकि सनोरथसे कल्पित बस्तुका भी ध्यान किया जाता है, परन्तु ईक्षणका कर्म सत्य पदार्थ ही होता है, यह लोकमें प्रसिद्ध है। इसलिए प्रतीत होता है. कि साक्षात्करणीय परमात्मा ही दरशनकर्मरूपसे कहा गया है। . और वही यहां 'पर! ओर 'पुरुष” शब्दोंसे ध्येय कहा गया है। परन्तु अमिध्यानमें पर पुरुष कहा गया है और दशनमें परसे पर कहा गया है, ऐसी अथस्थामें एककी अन्यत्र प्रद्मम्िज्ञा केसे हो सकेगी ? इसपर कहते हूँ-..-पर और पुरुष शब्द दोनों .वाक्योंमिं समान हैँ । यहां 'जीवधन” शब्दसे हो 4 “रत्वप्रभा . .. - ः 1-8 ० . ५ ननु ईक्षणं प्रमात्वात्‌.विषयसत्यतामपेक्षते इति भवतु सत्यः पर ईक्षणीयः, ध्यातव्य- स्तु असत्यो5परः कि न स्थादित्यत आह--स एवेति | श्रृतिभ्यां प्रत्यमिज्ञानात्‌ स एंवाध्यमिति सौत्रः सशब्दो व्याख्यातः। अन्रैवं सूत्रयोजना--3“कारे यो ध्येयः सः पर एवं आत्मा, वाक्यशेषे ईक्षणीयत्वोक्तेः, अन्न च श्रुतिप्रत्यमिशानात्‌ स एवाडयमिति। ननु शब्दमेदाज्न' प्रत्यमिज्ञा' इति शक्ृते--नन्विति | परात्पर इति शब्दभेदम अज्लीकृत्य ' श्रुतिम्याम्‌ उत्तप्त्यमिज्ञाया अविरोधमाह- रत्वम्रभाका अनुवाद है, इसपर कहते हैं---“तन्नासिध्यायतें?” - इत्यादिसे । कोई कहे “कि ईक्षग़- अमाहोनेसे सत्य विषयकी अपेक्षा रखता है, इसलिए : सत्य- प्रखह्वा: इक्षणका विषय हो,-असत्य अपर ब्रह्म ध्याव- का विषय क्यों नहीं है? इसपर कहते हैं---““स एव” इत्यादि । श्रुतियोसे अव्यभिज्ञा होती दै, इसलिए वह यहीं है, इस प्रकार सूत्रक्ने 'सः” शब्दका व्याख्यान किया है। यहां सूत्रकी योजना ऐसी करनी चाहिए--ओकारमें ज़ो ध्येय है, वह परमात्मा ही है, क्योंकि वाक्यशेपमें चद्द साक्षात्करर्णाय कद्दा गया हैं“औरन्यदाँ-शुतियोंसे अत्यभिज्ञा होती है, . अतः, वद्द *येंदर है । शब्दभेदसे प्रत्यभिज्ञा. नहीं द्वोती.ढ, ऐसीः शेका तह पक इत्यादिसे 4. “ पर/ और परात्परः -अब्दोमें भुदुका अंग्रीकार करके श्रुतियोंसे कही: हुई. अत्यभिज्ञाक्रा अविरोध कहते




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