आल्ह खंड | Aalh Khand

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Aalh Khand by शिवचरण लाल - Shivcharan Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ी॥&9००३७०22:६०५००2९०22551.22-900027:5५ 2०20522 ६८ >> ( १३ ) कैनप7४क किम अश आस आ8 पीके अपकी अमर अंक फ्रेर३ 1६५४४ 2०३६ 15 5 अर 32692६9२६6 माह +ध्य ॥चह उसपर फेस्ह कु लड़ाईसे लौट कर न आवें तव तक सारी भजा, मन्जिगण कुटुम्बिजन मेरी आज्ञा <£ फे चशवतों रहे । बिना मेरी आज्ञासे राजधानों में काई न आवे। यदि खुद आप 0 भो बिना आश्ञाके आना चाहें तो नहीं आ सकते । यदि आपको सेरो यह शर्त |! ४ अज्ञीकार है तो में भी राज्य-रक्ताका वोडा उठा लेता हूँ । इस बातको आप ४५ अपने प्रजागण, सन्त्रिगण, कुठुम्बिगणको भलोभांति खमका दोजिए क्योंकि «£ आपके जाने पर किसीको कुछ कहनेका सोका न रहे।” राजा अनकृपालने ( ] अपने कुठुम्बियों, म।न्त्रणणकों सलीमाँति समझा दिया कि “में जब तक लडाई से लोड कर न आऊँ तब तक दिल्लीपति पृथ्वीराज हैं, उनको आज्ञा पालन श करना सबका कर्तव्य है” । यह समझमाकर राजा अनहपालने अपना राज्य, &# फीष साप कर स्वयं सेवा लेकर युद्ू-पात्रा को । | इचर प्रथ्यीराजने अपनों चाहुकारुता, धनापिष्यसे सबको अपने बशवर्ती कर लिया ओर अजमेरले अपने वन्धुगणोंका बुलाकर वहाँ वसा लिया । ह उचर दिल्लोपति अनक्पालने शत्रुक् पयस्त करके दिल्लो में प्रवेश करना चाहा पर प्रथ्वाराजके वाराने रिया। अवज्ञपालने भा अपना बुढ़ोतो (/ याद्‌ को कि अब संसार में चन्‍्दशजकों मेहमानों है। पुत्रादि भा नहों ॥) | कि थेही मेये राज्य सम्पतिका विलासते। आखार पृथ्वोको राज्यम्ंज् पर बेठाने को घोषणा को ओर रुवयं अपने पुरुषोके बनाये हुए पाठन हुर्ग में जा बते। ४! ह। ए्रथ्चीको आश्वा होने पर अनंगपाल दिल्लोमें आकर राजाओंको निमन्त्रित करके * बढ़े समारोहके साथ एरथ्दरीको विज्ञोपति बचा दिया। एथ्वाने भो प्रादनका 87 ९.१ दुर्ग अपने नाना अवगपासका दिया ओर निर्मत्रित राजाओंकों बड़े आदरके * साथ विदा किया। ध्थ्वोकी प्रथम शादी ग्रुजरातके खुप्नसखिद्ध राजाको कुमारी [# कन्याके साथ हुआ। अनन्तर चण्डपुण्डोरकी कन्या दाहिमी और पांडव चंशीय 1 '$६ पद्मसेनकों कन्या पद्मावतोसे ओर माहिलकों बहिन अगना से, अगमा बड़ी ६2 चिह॒ुषो थो। उसके गर्भसे वेला नामको कन्याने द्रोपदोका अवतार धारण है| ) किया था । 'देवगिरि सम्नाट मानकों कन्या शशिन्रवापे, राठोए जयचन्दकी | संयोगिता आदिल एरध्वीराजका पाणित्रहण हुआ । न्‍ चौंडा आह्यण- है! सूयमरणणि सगे के पिताका नाम इन्द्रद्च था। * खूर्यमणि और चामुरुड दोनो खगे भाई थे। इन | वकसर इनके गॉँवका नाम था। दोनों भाई देवोंके उपासक थे । एक दिन देबीने अजह्ब्छप्छ 67: च्ट 5० :च्पफउ5० व: -बत छाई ८7३३ व उन न्च्ध््श्व्ड््ड्््ज्ल्जर्थ्ब्क सका इन हटालणण2 धश्ट ८&+ 0६९ और रे |) कर |




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