जीव विचार | Jeev Vichar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.55 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे. ) उ०-उस सूक्ष्म कारकों जिसका कि सबह्षकी दृष्टिमे भी विभाग न हो सके. प्र्० -मुहूत किस कहते हैं ? उ०-दो घड़ी अर्यात अड़तालीस मिनिोंका सुदूते होता है. विशेष--प्रत्येकदनस्पतिकाथ नियमसे बादर है पाँच स्थावर सूक्ष्म और बादर दो तरहके हैं सबको मिलाकर ण्यारद भेद छुये ये ग्यारह पर्याह्र और अपयाप्त- रूपसे दो तरहके हैं इस तरह स्थावरजीवके बाइस भेद ये प्र०-पयोप्त-जीव किसे कहते हैं ? उ०-जो जीव अपनी पर्या त्लियाँ पूरी कर चुका दो उसे प्र०-अपयांप्त-जीव किसे कहते हैं ? उ०-जो जीव अपनी पयां प्वियों पूरी न कर चुका हो उसे भ०-पयाप्ति किसे कहते हैं उ०-जीवकी उस चक्तिकफो-जिसके द्वारा जीव आदारकों ग्रहण कर रस शरीर और इन्द्रियोंको बनाता है तथा योग्य ए्दछोंको ग्रहण कर शवासोच्छात भाषा और मनको बनाता है संख-कवड्य-गंड॒छ जलोय-चदणग-अठस-लढ़गाइ ।
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