हित शिक्षावली प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध | Hit Shikshavali Prashnottara Tattvabodha
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+** प्रस्तोव॑त्रीं #
और तह पंनपः । श्रोप्तदृगुरूम्यो नमः हैं
ईस संघार मंपीपहा अरणय में अनांद काल से जीव श्री
लिन भरूपषित भाग से विश्ुद्ध होकें कुएुर हीणा चारियों की
पंबाते से कुपा्ग भड़ीकार कर परेध्रण कर रहा है, नरक
लिगोदादि के भनन्दा नन््त दुःखों का एप भोगी हो भ्रपनी फवित्रा-
स्पा को एप कर्ममीझप अशु्ति से अ्रपवित्र करता है, ज्ञान दश न
चारितरादे निभशुनों को वितार पथ इनद्रियों की विषय विकारों
में लिए होओें उन्हे ही भपना कर्तव्प समझ रहा हैं, जे में फोई
मंजुष्प मदरा पान के नशे में पागल होके भपने झच्छे २ प्रशा<
दो को छुल धय्या को छोट पहा दुर्गन््श भुमिकों हो छुल स-
श्या सप्रक किसी चतुर पुरुष का कहना न बान वहीं क्षोटर्ना
अपना परम कराजाय जानता है क्तें दी लीप धोह मिल््थपात्त
मगी नशेकी मतवात्ष में मतवासा दन लिन कथित पुर स्पा
को छोड इन्द्रियों के काप मोगांदि श्रथ्या को ही सुछ सथ्या
लान उप्तही में रप़रत्ता रहना भ्रयादश्यकीय कार््य समता
है, यादे छल्ला ओर खच्छ वीर मार्ग में चन्चते पाले महाकरी
शुद्ध निम्सनेहे दोत् माग बताने तो उल्टी उन्हीं महात्मा्ों
को ग मान कर उन निरारम्भी निष्परिग्रहों की निन्दा करने को
तत्पर बन रहते हैं, किन्तु जिन कायेत मार्ग क्या है इस को पहचान
में की कोसिश नहीं करदे,सेघारी मार्ग जिन कायेत पार्ग से एकदम
विरुद्ध हें इसलिए चतुर्गति संप्तार झठरी में ऋ्रपणं करने वालों
को शुकक्ति पार झच्छा नहीं सगंदा है यांदे कमी वौतराग पागे
जाततने की कोई हलू कर््भी जीर इच्छा करें तों हीनादारी
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