वैध्य रत्न | Vaidya Ratna

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Vaidya Ratna by पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । >फिक4- इस संसारमें शरीर्का आरोग्य रूना भो धर्मअर्थका साथव कहा है, यत)- धमार्थकाममोक्षाणां शरीर साधने स्थृतम! कारण कि, शरगरमें व्याधिके होनेसे मजुष्य किसी कारमके करनेको समर्थ नहीं रहता है, इसीसे शरीरको आरोग्य रखना परम पुरुषार्थ है, झोकमें प्रसिद्ध है कि, ' एक तन्दुरुस्ती हजार स्यामत” इस शरीरको नीरोग रखनेकेही निमित्त भगवान्‌ थन्वन्तारेने प्रगण होकर आयुर्वेदका प्रचार किया उनके अंयको अवलम्बन कर ऋषियुनियोंने अनेक यंय रे जिनकी चिकित्सासे आरोग्य हो प्राणी सुखसे काठयापन करने लगे । आसुवेदके प्राचीन अंथोमें चरक, सुश्रुत और वाग्भ हैं । यह थे परिश्रमसाध्य ओर दीघंकालमें पाठमें आतेह इसकारण ऋते माने और महात्माओंने सुख़से वोध होनेके निमित्त सवके संक्षेपसे सार छेकर छोटे छोटे प्रंथ निर्माण किये जिनके पठन पाठन कर थोडेही कालमें मनुष्ष सुबोध हो सक्ते हैं इसप्रकारके मय संख्यामे . थोड़े नहीं हैं परन्तु काठकमसे ऐसा सप्तय आनकर प्राप्त हुआ कि जिसके पास जो पुस्तक थी उसने अपने जीते जी उस अंबका प्रकाश न किया, वहुत्त क्या ! दूसरोंको दृशनतक भी न कराया । उनके उपरास्त वह पुस्तक या तो पार्नामं गलगई या कहीं पसारीकी दुकानकी पुडिया वॉधनेके कामममें भाई इस मकारसे अच्छी २ विद्याओंकी सहसखों पुस्तकें नष्ट होगई हैँ जिनका ताममात्र मल्या- न्तरोम प|या जाता है, और रहीसही और भी छोप होजातीं परन्तु जबसे यन्न्राह्यका प्रचार हुआ तबसे जो पुस्तक जहां सुती- भर यलपूर्वक व्ययद्रार ठाकर यन्त्ाधीशोंने मवाका छाएना आरभ किया ओर लेप होतेहुए ग्रयोंकी वचाया, अभी थोड़े दिनकी जात है के, चचऊके तीनचारही ग्रन्य छब्ब हांतिय परन्तु यन्त्रावप्‌-...




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