गरुड़ - पुराण खण्ड २ | Garud Puran Khand 2

Garud Puran Khand 2 by वेदमूर्ति तपोनिष्ठ - Vedmurti Taponishthश्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

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श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शमायसुस्सार ] - [ १५ से जोकर कही थी श्रौर रावण ने सीता के हरण के लिए मारीच को मूंग का रूप बनाकर श्रागे कर दिया ब्रौर वह एक तीन दाएड धारी संन्यासी का रुप घारण कर बहाँ थ्रा गया था ॥ १७1 सीता ने सोने के मूंग की छाला प्राप्त करने को 'राम को प्रेरित कर उसे मारने को मेज दिया था श्रौर इधर राम ने भारीच का चथ किया था ।. मरते समय मारीब ने “हा सीते ! हा लक्ष्मण |” थे झब्द सुह से लिकाले थे । इन झब्दों को सुनकर जानकी ने लक्ष्मण को भी राम को देखने के लिए पीछे से भेज दिया था । लक्ष्मण को पीछे से प्राया हुआ श्रीराम ने देखकर कहा--निश्चय ही राक्षसों की माया के द्वारा सीता का हरण होगया है॥ १1२० 1 इपी श्रस्तर में रावण ने जातकी को गोद में उठाकर हरण किया था । मर में वह बलवान राक्षस राव जदायु का भेदत कर. जानकी को लखुपुरी में ले पहुँचा था 1२१11 श्रशोकवूक्षच्छायायां रक्षितां तामधारयत्‌ । आगत्य राम: शून्यान्दय पर्सशालां ददशं हु ॥२९ कोकं कृत्वा जानक्या मार्गएं कृतवास्प्रभु । जटापयूषन्र संस्कृत्य तदुक्तो दक्षिणां दिशसु ॥२३ गरेवा सर्यं ततश्वक सुग्रीवेश च राघवः । सप्त तालास्विनिरभिय शरेसानतपवंणा ॥र४ बालिनख विनिभिय किष्कित्थायां हुरीश्वरमु । सुग्रीवं कृतबाघास कऋष्यमूके स्वयं स्थित: 11२४५ सुग्रीव: प्रेबयामास वानरात्पर्वतोपमादु 1 सीताया मार्मणं कत्तु पूर्वा् : सुमहावलानु ॥२६ प्रतीचीमुत्तरां प्राचीं दिख्य॑ं गर्व समागता: । दक्षिशान्तु दिश ये च सार्गयम्तोध्य जानकी सु 0७ चनानि पंतान्द्वीपान्नदीनां पुलिनानि च 1 जानकीन्ते झपद्यन्तो मरणे कृतनिश्रया: ॥२६८ चहाँ रावण ने अशोक बूल की छाया में उसे रख दिया था ! उधर सीराम दे देखा था कि पर्णशाला ज नकी से रहित सुनी यो ॥ररा। श्रीसस ने




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