स्तोत्र रत्नावली | Stotra Ratnawali
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
114 MB
कुल पष्ठ :
319
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)»'जाहुदनपरतश; शहर ने सरामि ।क्षन्तव्यों ०1२।
विनस्थी विषयविषधरे: पश्चम्रिमर्मसन्धी
थी विवेक! सुतधनयुवतिसवादसौख्ये निषण्ण) |
शेवीचिन्ताविहीन मम हृद यमहो मानग्वाधिरूट॑ | क्षन्तब्यो ० । ३।
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वाद क्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्रादि देवादितापै:
पापे रोगबिंयोगैस्वनवसितवषुः प्रौडिहीन च दीनम् ।
मिथ्यामोहामिलाप अमति मम मनो पूर्जटेध्यनशन्यै|क्षस्तत्यो ०४
नाना रोगादि दुःखोंके कारण मैं रोता ही रह
[हता था; ( उस समय भी ).
मुझसे शंकरका स्मरण नहीं बना, इसलिये हे शिव ! हे शिव ! हे दांकर !
हे महादेव ! हे शम्मो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो, क्षमा करो 1! ॥ २॥
जब मैं युवा-अवश्थामें आकर प्रौढ़ हुआ तो पाँच विषयरूपी सर्पोंने मेरे
मर्मस्थानोंमें डैंसा, जिससे मेरा विवेक न्ठ हो गया और में घनः स्त्री
और सन्तानक्े सुत्र मोगनेमें छग गया | उस समय भी आपके चिन्तनको
भूलकर मेरा हृदय बड़े घमण्ड और अभिमानले भर गया । अतः हे
शिव ! है शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्मों | अब मेरा अपराध
क्षमा करो | क्षमा करो ! ॥ ३ ॥ बृद्धावस्थामें मी, जब इन्द्रियॉँकी गति
शिथिल हो गयी है, बुद्धि सन््द पड़ गयी है और आधिदेविकादि तापों,
: पार्षोंः रोगों और वियोगोंसे शरीर जर्जरित हो गया है, मेरा मन मिथ्या
मोह और अमिलषाओंसे दुर्बछ और दीन होकर ( आप ) श्रीमहादेवजीके
: चिन्तनसे शून्य ही भ्रम रहा है | अतः हे शिव ! हे शिव | हे शंकर ! हे
महादेव ! हे शम्भो | अब में अपपध क्षमा करो | क्षमा करो | || ४ ||
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