महाभारत | Mahabharat Aaranyak Parv (part-i)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
795
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).ज
१८ महाभारते | [ आरण्यकपव
हद ७ : छ७छ[छऋ७फ फऊकऊ ्ऋऋऋश्ेअञअअ₹ॉच+च१-- 5
हियते बुध्यमानो5पि नरो हारिमिरिन्द्रियेः । हा
विसूहसंज्ञो दुष्टावैरुद्धान्तेरिव सारधिः न ॥ हि ९ क
जैसे दुष्ट और दिगडे हुए घोडोंके द्वारा सारथी राहमें गिरा दिया जाता ई, वेंस | दरने-
वाली इन्द्रियोंके ह1रा खिंचकर परमार्थज्ञानसे विहीन होकर ज्ञानी मलुष्य भी नष्ट |
जाता है ॥ ६२ ॥
षडिन्द्रियाणि विषय समागच्छन्ति ये यदा ।
तदा प्रादुर्भवत्येषां पू्वेसंकल्पर्ज मनः 1
है इन्द्रियां जब अपने विषयकी ओर जाती हैं, उस समय मनुष्यका अन्त।करण पूर्व सेकल्पके
अनुसार उसी विषयभोगकी कामना करता है ॥ ६३ ॥
मनों यस्येन्द्रियग्रामविषय प्राति चोदितम ।
तस्थोत्सुक्ध संभवति प्रवृत्तिश्रोपजायते ॥ ६४ ॥
इस प्रकार जिस्त मनुष्यक्ी इन्द्रियें और अन्तःकरण विषय भोगकी ओर दोडते हैं, उस
मनुष्यकी उस विषयक भोगनेके प्रति औत्सुक्य और प्रवृत्ति उत्पन्न दोती है ॥ ६४ ॥
ततः संकल्पवीर्यण कामेन विषयेघुमिः ।
विद्ध! पतति लोमाशो ज्योतिलों मात्पतडवत् ॥ ९७ ॥
उस समय, जैसे पतड्भा अग्निके रूपसे मोहित होकर उसमें ग्िरता है, उसी प्रकारसे विषय
भोगके सहुत्परूपी श्क्तिसे शक्तिशाली कामनांक बाणसे बिंधकर लोभकी अग्रिम ग्रिरता
है ॥ ६५ |
ततो विहारेराहारैमोहितश्व विशां पत्ते ।
महामोहसुखे मग्नो नात्मानसववुध्यते ॥६६॥
पञ्मात् , हे प्रजाओंके स्वामिन् ! वह मूर्ख अनुष्य आहार विद्वारसे मोहित होकर मह(मोहके
पुर पड़कर आत्मतचकों नहीं जान पाता ॥ ६६ ॥
एवं पतति संखारे ताखु तास्विह योनिषु ।
« अविद्याकमतृष्णाभिभ्रोम्पमाणोष्थ चक्रवत् ॥ ९७ ॥
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तब कम, अविधा और विषयतृष्णासे चक्रके समान अमित होकर इस संसारमें उन उन
योनियोंमें जाकर गिरता है ॥| ६७॥
त्रह्मादियु तृणान्तेषु भूतेषु परिवतेते ।
_ . जले झुबि तथाकाशे जायमानः पुनः घुनः ॥ ६८ ॥
नज्ाल लेकर तिनकेतक भूमि फिरनेवाले, आकाशमें चरनेवाले, और जलचर आदि योनि-
यॉर्म वारंबार जन्म लेता हुआ भूमता रहता है ॥ ६८ ॥ ०
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