तिलोय पण्णत्ती | Tiloya Pannatti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशक --- जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर- कुक जीवराज जन भन्थमाछाका परिचय + + ड़ सै से शोलापुर निवासी ब्ह्मचारी जीवराज गैतमचन्द्रजी दोशी कई वर्षोसे ससारसे उदासीन होकर धर्मेकार्यमें अपनी ज्ञाति छगा रहे हैं। सब्‌ १९४० में उनकी यह प्रवकत इच्छा हो उठी कि अपनी न्याय्रेपार्जित सपत्तिका उपयोग विशेष रूपसे धर्म और समाजरी उन्नतिंके कार्में करें। तदजतार उन्होंमे समस्त देशका परिश्रमण कर जैन विद्वानोंसे साक्षात्‌ और लिखित 'सम्मतिया इस बातकी सम्रह कीं कि कौनसे कार्येमें सपत्तिका उपयोग किया जाय॥ स्फुट मतसंचय कर हेंनेंके पश्चात्‌ सन्‌ १९४३ के भीष्म काठमें महाचारीजीने तीथल्षेत्र गजपंथा ( नाक्षिक ) के शीत वतावरणमें विद्यनोंकी समाज एकत्रित की, ' और उद्यापोह पूर्वक निर्णेयके लिए उक्त विषय अस्तुत करिया। विद्वत- सम्मेलनेके फलस्वरूप त्रह्मचारीजीने जेन सस्कृति तथा साहिल्यके समस्त जगोंके सरक्षण, उद्धार और प्रचारके हेतु जैन सस्कृति सेरक्षक सघ” की स्थापना की, और उसके लिए ३०००० ), तीस हजारंके दानकी घोषणा कर दी। उनकी परिग्रहनिद्वीच वेढती गई, और सन्‌ १९४४ उन्होंने लगभग २००००० ) दो छाखकी अपनी सपृर्ण सपत्ति सघको टूरंट रूपसे अपेण की | इसी सघके अतगेत “ जीवराज जैन प्रन्थमाला-! का सचालन हो रहा है। प्रस्तुत अन्य इसी मालांके प्रथम पुष्पका द्वितीय साग है। ४ क्5 ७905090050०0000900०90090000096०८655 :७७००5०००९ 2206 0००0०0०००००००००००७००००६ ०००००००००००० ड (००८9०2००20०007206०002655 '००००००००६०००५००९४२०००००९०००००००० 0७0०9००००००७०००००००००००००० ००0९ हा रे 900०००००००००००००००००००००००००००९७७०००७००००००००७०००००० मुद्रक--- टी, ण्मू, पाटील, सरस्वती (पेंटिंग प्रेस, भमरावती,




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