विद्वज्जनबोधक खंड 1 | Vidvajjanbodhak Khand 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन । जय क छ. *>(, # ७ #०- . यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है-छगभग सत्ताईस हजार छोक परिमाण है | अतएव हमने इसको खण्डश' प्रकाशित करना ही उचित समझा | चदि पाठकोने इसका यथेष्ट आदर किया, तो आगेके खण्ड शातघत्र ही अकाशित करनेका प्रयत्न किया जायगा | छगभग इतने ही बडे तीन खण्डोंमिं ग्रन्थ सम्पूर्ण हो जायगा | दिगम्बरजैनसम्प्रदायकी रक्षा और उन्नति करनेवाले तथा उसको सर्वेथा नष्ट होनेसे बचानेत्रांके तेरहपन्‍्थका यह एक प्रधान और माननीय ग्रन्थ है और इसमें उन सब विवादग्रस्त विषयॉकी चर्चा की गई है जिनपर आज भी छोग तरह तरहकी शकाये और कब्पनाये किया करते है। इसमे सैकड़ों ग्रन्थोंके उद्धरण और प्रमाण दिये गये है और इस इष्टिसे यह एक अपूर्व सम्रहग्रन्थ है । यद्यपि इस ग्रन्थमें ग्रन्थकर्ताने अपना नाम प्रकाशित नहीं किया है---अपनेकी केवछ € जिनवचनप्रकाशक श्रावक ” लिखा है; परन्तु यह विल्कुछ निश्चित है कि इसके कर्ता स्वर्गीय प० पतन्नाछाछूजी संघी थे जिन्होंने और भी अनेक प्रन्थोकी रचनाये की थीं | सर्घाजीका जीवनचरित सज्जनोत्तम श्रीयुत बाबू पाचूछाछूजी काछाने जैनहितैषीमे अकाशित कराया था, जिसे हम घन्यवादसहित जागे उद्धृत कर देते है | इस चरितसे पाठक संघीजीका पूरा पूरा परिचय पा जावेंगे | श्रीयुत्‌ बाबू राजमलूजी बड़जात्याके हम बहुत कृतज्ञ हे जिनकी विशेष प्रेरणा और उत्साहप्रदानसे हम इस ग्रन्थकी प्रकाशित करनेमें समर्थ हो सके है और जिन्होंने इस ग्रन्थकी २७० प्रतियों खरीदकर अपनी गशुणज्ञताका परिचिय दिया है । “+अकाशक !




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