ज्योतिष तत्व सुधार्णव | Jyotish Tatav Sundharnav

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Jyotish Tatav Sundharnav by श्री कृष्णदास श्रेष्ठिना - Shri Krishnadas Shreshthina

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका | प्रिय पाठक गण | 1चरकालम मंरा यह दिचार था कि, को उ्योतिपकी घपुस्तककाों सम्पादन करके प्यातिपापयामदापेयाक पति प्रक्राशितकर परन्तु शागैरक अस्वस्य* ताम पारश्रम न करमसझा संवत्‌ १९५३ फो, आदिसे जब इस ग्रन्यफे लिसनेका सार्स्म कया तब समय पाय इस ग्रन्थक्त प्रमन्‍्धकी अवलोकन करके मुरा- दामाद नवासा श्रामान्‌ जगाद्ररपात विद्वदराशरोमाणि पाण्डित ज्वालाप्रसाद- मिश्रजीन अपनी इच्छा प्रकट करी ।कि, आप हमारे सेठनी श्राकृष्णदासात्मन सेमगजजोऊे अरे इस “ उ्योतिपतक्लमुधाण “ नामऊप्रन्थकों समर्पण करना, ययाक, यह ग्रन्य हमार सेठनीकद्टी गांग्य ३, उक्त प* जीफे कथनाठुसार मे इस अन्यफे पूण करनेफी ट्यत हुआ किन्तु कार्य भ्रवृत्त होनेके उपरान्त अनक ग्रकार्क विश्न उपस्थित हुए कि, मिनसे भन्‍य पृणणदोनेकी असम्माचना थी परन्तु श्रीगुरुदेबके चरणऊमठोकी कृपासे नावश्नता पूरक अन्य पूण हुआ । इस प्रन्यमं अनेझ ज्योतिपकी पुस्तकृका और विविधाचायोके मतोंका सार भाग ग्रदणकरक लेखा है आर ज्योतिपगतेक जनकि सुगमाये मापादीका करादया है तथा यूद्ध स्थठुम संस्कृत टिप्पणीमी सान्नयोशित की ६ ॥। ज्योतिष तंत्रशाम्ने च विवादे वेबशाद्रक । अयंमान्न्तु गृढीयान्नापर्ब्दं विचारयेत्‌ ॥ 1 ॥ ज्योतिषजाश्र व तंत्रशाख और रिवाद तथा वैद्यक झास्रमें अयमात्रकों अहण करना उचित है यहों अपशब्दका विचार न करना चाहिये । इस आचीन कोकसे प्रगट होता है कि, कोई २ वचन व्याकरणानुसार अशुद्ध दोनेसेमी पारे- त्याग करनेके उचित नहीं इ-पाय्कशजप्ी उत्तफछेब्ओ आशयको प्रषण गए ६ एक बात यद्दापर 'लिपना परमावश्यक है के, जैसे आजकल आयः आमे- मानी पाण्डतमानी नाममातन्रके ज्योतिषी ऐसे हैं कि, जो अपनेही मुखसे अपनी अजशंसा करते और अपनेकी देवज्ञ़राज ज्योतिषी आदिनामसे आतिद्ध करते ई-जिससे अपना हास्य कगरहे ई-और धृतेता करके अपनी प्रतिष्ठा चाहते पँ-यहाँ पर एक छोक स्मरण आताहै कि,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now