क्षयादर्श | Kshaydarsha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : क्षयादर्श  - Kshaydarsha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिशंकर जी शर्म्मा - Harishankar Ji Sharmma

Add Infomation AboutHarishankar Ji Sharmma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
*( २० ) भूमि, दूसरा दीज ५ भूमि मलुप्प का दरोर, और बीज रोग के कीटाणु | यदि भूमि घनुद्धत नहीं हैं तो वोज नदीं उगेगा । अर्थात्‌ यदि भनुष्य शरीर में अवरोध फारक शब्कि दे तो पीटा शुओं से व्याधि नदीं दोगी । सांधारण रोतिं से सामान्य धवध्था में यदि शरीर घच्छी तग्द रपस्थ दी तो कीटारु चार्दे दमारे भ्वोष्त कै साथ भीतर दी पयों न चते जायें तो भी मरजाते हैं । हमें निश्चय हैँ कि झितने लोग ध्याल इस समय यहां उपस्थित श उस मे से कोई पक भो पऐेला नहींदेजिन पर उन दीटा- लाएबों ने आक्रमण न किया दोगा।ये विश्वग्पायक् है । ये भकानो, दस्ती की सड़कों और रेल की गाड़ियों को दया में रहते हैं । और ऐसी कोई भी जगह नहीं है जद्दां वे न द्ोछे दो 1 दम सब भ्यास द्वारा शरीर में इन्दे ग्रदण कर लेते हैं और तो भी सथ प्रकार स्वस्थ रदते हैं ॥ थद्दां पर यद्द प्रश्न उपस्थित होता दै कि फीटागुरूपी शह् का कया हुश्मा ? चद्‌ चेमौत मारागया-। दीज्ञ पक् ऐेसी भूमि में पड़ा जहां उस का पोधा खग न सका, केवज चे श्रारब्घदीव लोग जिन का स्वास्थ्य यहुत निर्वल है था लिन की छाती पहुत क्म- जोप् है । जो भेजी गर्द से भये हुई और खच्छ घ्वा से रद्धित कोठरियों में काम करते दें या दुःसाध्य रोगों से भ्रसित हेंया शक्ति से झधिक काम करते हैं उन के शरोर इन पीराणुओं के लिये उर्दस भूमि का दाम देने दे ० ॥|




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now