भोजप्रबन्ध | Bhojprabandh

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Bhojprabandh by पंडित बस्तीराम - Pandit Bastiramपंडित वल्लाल - Pandit Vallal

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पंडित बस्तीराम - Pandit Bastiram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ भेजप्रवन्धः । भया । पह (पुचर)नव पांच वर्षका भेया तब(उसका) पिता अपनी दृद्धावस्था जानके मुख्य मंत्रियोंकी चुलवा, छोटे भाई महावली मुंगकी देख और वाहक पृत्रकों देखके विचार करता शया । कि जो में राज्यकी ऐश्र्यको धारण करेंगे समर्थ भाईकी त्यागके राज्यकी पुत्रके वारते दूँगा वो छोकापवाद ( छोगेमें निंदा ) होगा। अथवा मेंरे बालक पृन्नको, मुंज राज्यके ठोशसे विष आदि देकर मरवा दालेगा | तब दिया हुआज्ी राज्य वृथा होगा। और पत्रकी हानि वथा वंशनाश होगा ॥ छोभः प्रतिष्ठा पापस्य प्रसूतिरोभ एव च॥, द्वेषफोधादिननको ठोभः पपस्य कारणस्‌॥१॥ छोज पापकी प्रतिष् ( मूल ) है, छोभही प्रपकी उत्पत्ति « “' है और द्वेष ( बेर ) कोप आविकोकी उसस्न करनेवाला टोभ, पाएका हेतु है 01॥ . * * ढोभात्कोषः प्रभवाति क्ोधाद डोहः परव्तते! देहिण नरक याति शाद्चज्ञोपि विचक्षणं:॥२॥ लोमसे कोध होता है, को पसे दोह होता है फ़िर दोह कर- नेसे शाख्की जानवेवाला पंडितशी नरकको जाता है॥२॥ “मात्र पितरं पुत्र आतरं वा सुदतत्तमण॥ . छोंभाषिशे नरो हँति स्वामिनं वा सहोदरम॥३॥ लोभसे भरा हुआ (आत्तक्त हुआ ) नर, माता, पिता, पुत्र, भाई, अत्यंत मित्र, स्वामी, सहीदर भाई इन सोंको मार डालता है॥ ३ ॥ 1




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