घुमक्कड़ स्वामी | Ghumakkan Swami

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Ghumakkan Swami  by राहुल संकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गृह-त्याग २६ अबतो मेरे मित्र श्री भागवताचायकी कृपा से गेरुआ वस्त्र पहननेबाले भी बैरागी मिलने लगे हैं | वस्त्र या तो कमरमें लिपटा तइमतकी तरहका होता है, या विशेष ढंगसे उसे दोनों कन्धोंपर डाल कर ऐसे बॉधते हें, कि बह घुटनों तक पहुँचता है | दोनोंकों भचला कहते हैं | हर हालतमें कापीन (लेगाटी) रखना जरूरी है। अचला धारण करनेवाऊकों वस्तरधारी कहते हैं । वह चाहे तो खुटिया रख कर सिर-दाद, केश-दाढ़ी मुंडा सकते हैं, था सभी बाल रख सकते हैं | पर, केवल दादी बनाना या मूँछ रखना या बालकों केंचीसे कटाना-छटाना वर्जित है । अब॑ इसमें कुछ अपवाद भी होने लगे हैं, जिनको झुरू पहलेपहल दसनामी संन्यासियोंने किया । एक हिन्दीके विज्ञान छेखकने यों ही अटकल पच्चू अनुसन्धान कर मारा, कि वेरागियोंमें तपसा एक सम्प्रदाय होता है । वस्तुतः तपसी जटाधारी वैरागीको कहते हैं । जटाधारी होनेके लिए यथ्रपि भभूत घारण करना अनिवाय नहीं है, पर अक्सर जटा-भजूत साथ-साथ चलता हैं। तपसी मूँजकी मोटी कधनी पहनते ओर उसमें पतली कपडेकी कोपीन डाल लेते हैं । कोई-काई मूँजकी या पराटकी कोर्पीन बनाते हैं । काय्वालां को काटिया बाबा कहते हैं। का्पीनके ऊपर अँचला लगाना अपनी इच्छा पर है । इन्हींका तपसी या (तपस्वी) कहते हैं | तपस्वी लछोगोंके लिए चिलम और घुनी अत्यावश्यक चीज है। इस भेष ओर चिलमधुनीमें आकर्षण भी बहुत हैं | तपसी होकर जो गॉजा-चिलम न पिये, तो तपसी काहेका ? कितने ही तपसी गरियोंमें पंचधुनी भी तापते हं। वैरागी स्थानोंमें बहुतोंके संस्थापक यही तपसी रहे हैं। तपसीके गलेमें कोई मणियोंकी कण्टी नहीं, बल्कि तुलसीका एक मोटा सा दाना जनेऊमें बंधा रहता है, जिसे हीरा कहा जाता है । साधारण लोग वस्त्रधारियोंस अधिक तपसीका सन्‍्मान करते हैं, क्योंकि उनमें विखिश्रता होती है । रामानरिद- योंमें इस तरह कई तिऊूक-छाप ओर वेष-भूषाके कारण कितने ही स्थायी या अस्थायी सेद होते हैं, पर वह सब अपनेकों एक ही सम्प्रदायका अनुयायी मानते हैं । सिद्धान्तोंमें दुसरे तीन सम्प्रदायोंके साधुओंसे तिरक-छापमें भेद रखनेपर भी रामानन्दी खान-पान आदिका कोई भेद नहीं




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