संगीता गीतांजलि | Sangita-gitanjali

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Sangita-gitanjali by रबिन्द्रनाथ टैगोर - Rabindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पी गोत आर नाइ रे बेला नामलो छाया मारो आाघात सइबे आापार आवार पपेछे आषाढ़ आकाश छये श्रावार एरा घिरिछे मोर मन आनन्देरि सागर थेके .आषाढ़ संध्या घनिये एलो आलोय भॉलोकमय करे हें उड़िये ध्वजा अश्रमेदी रथे /एकटि नमस्कार प्रभ कक -“.. न ८- जणवार नीरब कोरे दाओ हे तोमार _ प्चो हे एघो सज्ल घन पइ जे तोमार प्रम ओ गो पखनो घोर भांगे ना तोर जे पबार भासिये दिते हबे आमार -* /णब्ार तोरा आमार जावार बेलाते एड भल्िन वस्त्र छाड़ते हबे एइ करेछो भालो निटुर आओइ आखनतलेर मारटिर परे ओइ रे तरी दिलो खुले कत अजानारे जानाइले तुमि केंबे आमि बाहिर होलेम तोमारि गान गेये डे०६




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