पातंजल - योगदर्शनम् | Patanjal - Yogadarshanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
553
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सभ छ्री चपल॒ता और तरछ्ञता स्थासाविक गुण है. तशापि सजनों
का सन घर्म और मोघ की भोर चक्षठा है भौर दुराचारियों सम
सन निन्दित कर्मा में चलता है दिससे ब ज्लोग इन कर्मो के झादि
सध्य और भस्त में दुःख उठाते हैं भौर यद आपामार प्रसिद्ध दे
कि सुख की सबको इच्छा हवांती हे परस्तु अश्पक्त लोग सुखामास
को सुरू सानकर फिर दुाखसागर में इवते हैं जैसे परस्ती परपुरुष
प्रसगावि बण्धिक सुरू में सम्न होमे से रपबंश भोर धससे कु्ादि
मद्दारोगों से अम्म मर मद्दादुःर का मोण करत है | इससे यश सिद्ध
हा कि बद सुख नहीं वश्कि सुखाभास हे दस सुख बी दे
डिसमें दु!स का अत्पस्तामाव दो जाय भोर उसी दुःख्म के अस्य-
३ को सोछ करते हैं सैसे मद॒पि कपिणदेणव से सास्यशास््र में
1 है ।
“प्रप प्रिषिपदुस्तात्पन्तनिव्पिरस्पन्तपस्पार्थ/!
इसका अर्थ यह दे कि आंधिमोतिक झाधिदेशिक ओोर
आध्यात्मिक दुड््ों की अस्मस्त निश्मसि को मोक्ष कइते हैं पस
दिचारशीक्ष मनुष्य इस दो अकय उुस की प्राप्ति का पस्न करते
हैं भोर इस सुर्प्राप्ति का साघन सन ओर इशरिद्रयों का निमद दे
एम सनोभिषइ योग के किला असाध्य है। गीणा में भी कृष्ण से
मी क्या हे “झम्यासेसतु क्ोन्तेय वैराम्पण चर गुशते” अर्थात् पोगा-
भ्याप्त और पेराम्ब से मनोभिषह हो सकता है भोर प्लैसे झम्निर्से
हपाने से घातुझों के सल्ल रत हो जात हैं पेसे दी योगाम्पास से
सतुभ्प के मज़ बिक्षेप और आदरण दाप काष छुठ्ध ड्ान कौ
प्राप्ति दोठी हे भौर रुससे मोक्ष सिद्ध दोता दे ।
परम्तु आशकज्ष कोर्गो न॑ चोग शब्द को ऐसा धुरा समझ
रखा हे कि को भिह्कक गेस्ते दस्त पहनकर किसी किया केल
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