अध्यात्म कल्पद्रुम | Adhyatam Kalpdrum
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
788
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कु. सुमित्रसिंह लोढ़ा - Ku. Sumitrasingh Lodha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है.
सपने प्ाथ कोटा छेजानेका भरसक प्रयत्न किया किन्तु सब
व्यथे | तब उसने उज्जेनके श्रीसंघसे अपने पुत्रको उसे दीला
देनेकी प्राथना की | इस भार्नाने अ्रीसंघके समक्ष
उप्त समय एक जठीरू समस्या उपस्थित कर दी। एक जोर
पृज्य शुरुमह्रान व धामिक समस्या थी व दसरी ओर
मातृ छुदय ! कई विद्धान् व अनुभवी पुरुषोने अपने अपने बिचारोंको
भाषणके रूपमें, समस्त श्रोताओके सामने रक्खे व अन्तमें इस निर्णय
पर पहुँचे कि स्वये मुनि श्रीहृर्षविनयमीसे प्राथेना की साथ क्ि
दोनों पक्षोमेसे मिसफो अच्छा समझते हो श्रीसंघके सामने उसीकी
तरफ जा कर बैठ जाय | इस निर्णयको सुनकर सुनिश्चीका हृदय--
कमल खिल ऊठा | वे जो वेराम्परंगमें पूर्णछूपसे रंग चुके थे मिनको
संसारकी निस्सारताका सच्चा भान हो गया था, भछा फिर सांसारिक
मोहरूपी सपैणीके चंगुरूमें वृथो कर फँस सकते थे | ! उन्होंने अपने
सचे उच्च आत्मिक ध्येयके सामने मातु-मोहकी कुछ मी परवाह न
की | वे निर्भयंतापूवक सप॑ दशेकोके सामने अपने ग्रुरुमहारानके
चरणोंमें बेठ कर अपने घमरति होनेका परिचय दिया | फिर क्या
था ? न्यायकी पुणोहुति हुईं और उनकी मातुश्नी तथा आता दरा-
नीकों निराश हो वापोस अपने घरके मागकों अवलूम्बन छेना पड़ा |
विद्यान्यास---
मुनिश्नी हृपेविनयका विद्याप्रेम भी आश्रयेननक था | उन्होंने
सम्वत् १९५८ के उच्जेन नगरमें होनेवाले चतुमौसमें ही गुरुमहाराज
द्वारा पंचप्रतिक्रमण, पाक्षिक सूत्र, जीवविचार, नवतरव, दंडक, रूघु-
संघयणी आदि धामिऊ पुस्तकोंका अम्यास कर अपनो “तीदण बुढिका
परिचय दिया | 'चतुमौसकी अवधि समाप्त होने पर उन्होंने गुरुमहा-
रामके सेग जहमदाबादवालें जबेरी छोटाभाईके संघकी शोभा बढ़ा-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...