अध्यात्म कल्पद्रुम | Adhyatam Kalpdrum

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Adhyatam Kalpdrum by कु. सुमित्रसिंह लोढ़ा - Ku. Sumitrasingh Lodha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है. सपने प्ाथ कोटा छेजानेका भरसक प्रयत्न किया किन्तु सब व्यथे | तब उसने उज्जेनके श्रीसंघसे अपने पुत्रको उसे दीला देनेकी प्राथना की | इस भार्नाने अ्रीसंघके समक्ष उप्त समय एक जठीरू समस्या उपस्थित कर दी। एक जोर पृज्य शुरुमह्रान व धामिक समस्या थी व दसरी ओर मातृ छुदय ! कई विद्धान्‌ व अनुभवी पुरुषोने अपने अपने बिचारोंको भाषणके रूपमें, समस्त श्रोताओके सामने रक्खे व अन्तमें इस निर्णय पर पहुँचे कि स्वये मुनि श्रीहृर्षविनयमीसे प्राथेना की साथ क्ि दोनों पक्षोमेसे मिसफो अच्छा समझते हो श्रीसंघके सामने उसीकी तरफ जा कर बैठ जाय | इस निर्णयको सुनकर सुनिश्चीका हृदय-- कमल खिल ऊठा | वे जो वेराम्परंगमें पूर्णछूपसे रंग चुके थे मिनको संसारकी निस्सारताका सच्चा भान हो गया था, भछा फिर सांसारिक मोहरूपी सपैणीके चंगुरूमें वृथो कर फँस सकते थे | ! उन्होंने अपने सचे उच्च आत्मिक ध्येयके सामने मातु-मोहकी कुछ मी परवाह न की | वे निर्भयंतापूवक सप॑ दशेकोके सामने अपने ग्रुरुमहारानके चरणोंमें बेठ कर अपने घमरति होनेका परिचय दिया | फिर क्या था ? न्यायकी पुणोहुति हुईं और उनकी मातुश्नी तथा आता दरा- नीकों निराश हो वापोस अपने घरके मागकों अवलूम्बन छेना पड़ा | विद्यान्यास--- मुनिश्नी हृपेविनयका विद्याप्रेम भी आश्रयेननक था | उन्होंने सम्वत्‌ १९५८ के उच्जेन नगरमें होनेवाले चतुमौसमें ही गुरुमहाराज द्वारा पंचप्रतिक्रमण, पाक्षिक सूत्र, जीवविचार, नवतरव, दंडक, रूघु- संघयणी आदि धामिऊ पुस्तकोंका अम्यास कर अपनो “तीदण बुढिका परिचय दिया | 'चतुमौसकी अवधि समाप्त होने पर उन्होंने गुरुमहा- रामके सेग जहमदाबादवालें जबेरी छोटाभाईके संघकी शोभा बढ़ा-




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