सभाष्य तत्वार्था धिगम सूत्र | Sabhashya Tatvartha Dhigam Sutra

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Sabhashya Tatvartha Dhigam Sutra by खूबचन्द्र सिद्धांत शास्त्री - KhoobChandra Siddhant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रायचन्द्रजेनशास्रमाला, श्रीमदुमास्यातिविरचित सभाष्यतत्त्वार्थाविगमसूत्रस्‌ । हिन्दीभाषानुवादसहितम्‌ । --“ग्-00+0 सम्बन्धका रिकाः आचारयने क्ृतज्ञता आदि प्रक/ करनेके ल्यि अथत्ी आदिम मद्शचरण करनी आस्तियोंके लिये आउश्यक माना है, अतएव यहाँपर भी आचाययउमास्वातिवाचक वस्तु निर्देशात्मक मगल्फ़ो करते हुए तत्त्वायसूत्रकी माप्यरूप टीका करनेफ्े पूर्व इस ग्रथफ़ी उत्पत्ति आदिका सम्ब 4 दिखानिवाढी वारिकाओंको ढिखंते हैं । सम्यग्दशेनशुद्ध यो ज्ञान विरातिमेव चाप्तोति । दुःखनिमित्तमपीद तेन सुलब्ध भव॒ति जम ॥ १॥ अये--बोई भी मनुष्य यदि इस प्रझरके ज्ञान और वैराण्यत्रो नियमसे प्राप्त कर छेता ह, जोकि सम्पदरशनसे शुद्ध है तो, यथपि समारमें जन्‍म वारण करना दु ख़ज़ा ही कारण है, फिर मी उससझ्ञ जन्म धारण करना सार्थक अथवा सुखकर ही समझना चाहिये। भावाथै---प्स्मार जाम मएण रुप है, और इसी लिये पट दु जोंका घर है। किंतु सभी भाणी दु लेसे छूटना या सुखसो प्राप्त करना चाहते है। परन्तु दु खेसे उुट्मारा या सुखी प्राप्ति तत्तक नहीं हो सकती, जनतक जीव सप्तार शरीर और मोग इन तीनों विषयोसे ज्ञानपुवेक वैराग्यजों प्राप्त न हे जाय | साथ ही यह बात भी ध्यानमें रसनी चाहिये, क्रि ज्ञान और वेराग्य मी शुद्ध वही माना जा सकता या बत्तुत वहीं यायेकारी हो समता है, जोडि सम्यखशनसे युक्त हो। अनएव यद्यपि जाम अहण करना अथवा सप्तार दु खरूप या दु खाता ही निमित्त हे, फिर भी उनके डिये वह समीचीन या सुप्तत़ ही वारण है| जाता €, जोझि उमों धारण करके इस रतात्य-मम्यस्दर्शन सम्यम्तान ओर सम्यक्चारितयों घारण क्या वरते ₹।




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