राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज | Rajasthan Me Sanskrit Sahitya Ki Khoj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# राजस्थान से संस साहिय कर खाब # [ ९६ पाश्पे मे, उसके कुए्डल स्थान ( एक कर्ण भूषण ) वी शोभा बढाता है। जयन्तर्सिह ने अपनी जनता के मनोर्धनार्थ नर्यों रसें से पूर्ण इस रूपक के अभिनय की आज्ञा दी वताई है। कारए यह बताया है, हि जनता झो, अभिनेताओं छाटा सेले गये केपल भयानऊ रसस्ि अकरणों के देखने से, बहुत ही अरुचि हो गई थी। अत उस रूपक का अभिनय प्रारम्भ किया गया | सून्नधार, हस प्रशस्‍्त अन्सर पर, अपने प्रकरण की अभिनेय सामग्री ऊो प्रस्तुत करने मे, स्वय को बधाई देता है। सभी अभिनेता वहुत अच्छे कलामार हैं | जयन्तसिंदह सचिव प्रमुस दर्शकों मे हैँ । इस नाटक का चरितनायर पीरता और गौरय गरिमा का स्थान श्री वीरघवल ग्रञ्भु है, साथ ही कयि जयसिंह सूरि की अनुपम ऊनिप्रतिभा है। प्रस्तायनानन्तर बीरधयल और तेज पाल परस्पर बतोलाप करते हुए दिखाये गये हैं.। प्रथम पीरधयल बस्तुपाल की प्रशसा के पुल वाधता है और तेज पाल प्रीरपयल की प्रशंसा के । इसी बीच पीरघयल, श्रीवस्तुपाल द्वारा एक अवसर पर प्रटरशित बुद्धिचातुर्य की भ्रशसा करता है। यदुराज़ा की सेना ने सुदृरवर्त्ती स्थान से आकर लाट देश + स्वामी सिंह को भयभोत कर दिया है। भयत्रस्त मालय नरेश ने भी सिंह वी शक्ति को, अपने सह्योग को बीच मे ही हटा कर, और कमजोर वना दिया है । यह सहयोग उसे अपने मित्रमण्डल से मिलता था। ऐसी परिस्थितियों मे, उस्तुपाल ने अपने चातुयये से, सिंह को, जो पहले शत्रु था तीरधयल का मित्र बना दिया। वीरघयल, सम्रामसिंह के पड़यन्त्र का, जो उसने पीर ययल के पिरूद्ध किया था, उस्तुपाल ने किस तरह 'भण्डा फोड” जिया उमर भी पर्णन ऊरता है| इसका दसरे एफ स्थान पर शस्त्र मामु बतलाया गया है। यह सिन्धुराज़ का पुत्र और लाटदेश के राजा सिंह का भतीजा धा। उम समय सम्रामसिंह, अपने पेठर पैर को ध्यान मे रख कर, सिंहण के सेनापतियों को अपने साथ , ले गया, जब ऊक्लि पीरधनज्न मरू ( मारयाड ) राताओं फो परानित फ्रने मे लगा हुआ था, और वह चीरघवल या पीछा करने लग गया | फिर प्रतेमान परिस्थिति सा अयत्तरण क्या गया है । राजा सिंहण उसमे पिरुद्ध कूच कर चुरा है। साथ द्वी उसके सेनारूपी समुद्र में सदियों री तरह अमेक राजा लोग आकर मिल गये है सिद॒ण को सिन्धुराज्ञ के पु्न ने ही ऐसी तैयारी के लिये पूर्व प्रेरणा दी और जिसकी ईप्यो वस्तुपाल के हारा की गई यद्धगरिमा के कारण और अधिक उठ गई । दूसरी ओर नीरधयल के पिरुद्ध, तुरुपफ सेनापति मे, अपनी महती सेना से प्रश्वी की ऊपाते हुए, आफ़सण कर दिया है । इतना ही नहीं मालया के राजा ने भी, अपने सहायक +रद राजा लोगो के साथ, पीरपयल से युद्ध ठानने का पक्ता तिशवय किया है। चारो ओर से ऐसी परिस्यितियों के दयात् पडने पर भी, यद्द क॒द्दता है, कि उस्त्रपाल मे बद्धिचातुणे से उसे अपश्य ही इन कठिनाइयों से छटकारा मिलेगा। अप वस्नुपाल प्रयेश फरता है । पह सात्रा के ऊार्यों में तेच पाल के पुत्र लायण्यसिंद द्वारा प्रदर्शित असीम अध्ययसाय और क्रियाशक्ति वी प्रशमा करता है। वह कहता है फि लायण्यर्सिद ने अपने गुप्तचरों जो प्रतिपक्षी राजाओं के पास भेज दिया है जहा उन्होंने उन पिपक्षी राता लेगें के सास्पिय्रिग्रहिफों ( यद्ध और शान्ति के सचिव ) या पूर्ण फिश्यास आाप्त फर लिया है । पह यह मी कलता है कि चर लोग परपती राचाओ री आय का काम करते है । अत ये राजा लोग घनरे हाथों से से थी जाने याली ग़टिया के सम्गन है । फिर पारस्परिक प्रशंसात्मक चचो होती है निममे प्रीरथयल द्वारा पश्नग्राम के युद्ध मे भ्रटर्टित वीरता दी तेज पाल प्रशसा करता है। तब चीरधपयल यह घोपणा करता है. कि उसकी इच्छा कम से ऊम हम्मीर यीर पर आक्रमण करने




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