श्वेतांबर दिगम्बर भाग 1, 2 | Swetamber-digamber Bhag 1, 2

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Swetamber-digamber Bhag 1, 2 by मुनि दर्शन विजय जी - Muni Darshan Vijay Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[?₹ ॥ 7 “विद्वानों का मंत है कि--इसा मसीह ने कई दे पयन्त £द्विन्द चर में रद्द कर जैन बौद्ध या शैव धर्म का परिशीलन किया और “वांद-में यूरोप में ज्ञाकर इसाई घमे की स्थापना“ की 4 यहां के: २७ अच- तारी को उन्दोंने 'उक्त.शब्दों द्वारा ईश्वरी स्थान दिया दवे1मगर वैद्ध घर्म में इस प्रचार २७ बौद्धः नहीं: दें: और शैव -धर्म-न्म ह४. अवतार . मनुष्य रूप से नहीं; . है...]...-.सिफफ,.. जैन इन्द्र रे धर्म में ही २७ तीर्थंकर हैं और ये भनुष्य ही, दे, अतः. उस 1 अक 1 ५, हज आयात म॑ २७ चुजग के रूप मं-इनका हद खुचन, हैँ । इसके अलाबचा 2 ० इसाइ धम भ पापा का ज्षमा मागन का ववाध, भा जन पभातक 2 «1 हैं मण का ही कुछ अनुकरण है। इससे तये पाया जाता दे, कि--इसा 10, 25 «० मसीह नें यहां जैन धर्म.का परिशलन किया है यदि यह बात १२४ 0० ६४०८ ०.1 सच्ची हैं तो उस समय में २४ तीर्थंकर पापा में माने ,जांते थे। यह भी स्वीकृत करना पडेगा। के 2. पथ हल 537 3६४४ कक कट हक 75 दिगम्बरं---भगवान मेद्दाचीर स्वामी के थुग के जैन भुनि जरत द्ठीये। ् | जन-+-यह बात निम्नलिखित प्रमाणों से गलत दै। , ; ,+८ मोटी २-चोंद्ध शास्त्रों म सूचित “चाउज्जामो धम्मो” वाले जन साधु सवस्त्र द्वा भ ! + ः (# न न ४ ७ मत. में समस्त जीचो फे धर्गाफरेण से छे अमिजातिया-.( छे लश्या के समान विकास पायरी ) मानी गई हैं जो इस प्रकार हैँ. «. १--कष्णामजाति:-ऋर मनुष्य . ... .). .: ( -४-नीलामिज्ञाति-भिछु, चौंद मि्ष ६८:लोबित्यामि जाति-नि्गत्थ साधु जो -नियत तया_ ज्वोल पट्टा को पद्चिनते हैँ माने जो चखधारी दी-हैं




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