ठोस होते हुये | Thos Hote Huye

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Thos Hote Huye by वीरेन्द्र सक्सेना - Virendra Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऊपर से तुमने चटक चूड़ियाँ भी पहनी थीं । चेहरा तुम्हारा स्वयं ही इतना स्निग्ध और साफ़ है कि कोई उसे देखकर ही “ फिसल सकता है । ऊपर से तुमने हल्का मेक-अप भी किया था--- होंठों पर हल्की लिपस्टिक, आँखों मे महीन काजल माथे पर छोटी-सी बिंदी ! कुल मिलाकर, ने सही विश्व-शुन्दरी ! पर तुम उस मेनका सदृश तो थी: जिसने विश्वामित्र को मोह लिया था । कलर-इलाइंडनेस आसमान का रंग कंसा है ? ' “नही मालूम 1 पूर्णिमा का चाँद कंसा है ? “नहीं मालूम ।! “फिर तो तुम्हें यह भी नही मालूम होगा-- इस गहरी नीली साड़ी में तुम स्वच्छ निरभ्र आकाश का भरा-पूरा चाँद नज़र आती हो, और आस-पास का सब कुछ वहुत-बहुत अधूरा लगता है ।' सम्मोहन / २३




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