स्वास्थ्य रक्षक | Svasthya Rakshak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अडानााकाता क्रा/2ड 2 काजमा५2भाा तय 2ानाक तानकनाशाधा॥#0१ ९72: ऋिनाकाभाक: आकर आरा बहार मरा
७ विद्या, वीरता, बुद्धि, साहस, शक्ति और थैर्य - ये सभी गुण मनुष्य के
सच्चे और स्वाभाविक मित्र होते हैं अत इनका स्राथ कभी नहीं छोना चाहिए क्याकि
यदि इनको साथ रखा जाए और इनसे मदद ली जाए तो मनुष्य आपातकाल में भी
मुसीबतों का सामना क़र सकता है और विपत्ति को दूर भ्रगा सकता है। ये सभी मित्र
आपातकाल में सच्चे सहयोगी सिद्ध होते हैं। जो इनका साथ नहीं छोड़ता वह कभी
भी असफल नहीं हाता।
डरधडाधरक्रयाएद्ररतशदाका/दा/ाक वा व्यक्त तदाला ताप १ प८:मचमाकावा साधा तप बाद: ्ााट 2
बोलने का काम करने वाली कर्मेंद्रिय और स्वाद चखने का काम करने वाली ज्ञनेद्धिय
भी है उसी प्रकार यह गुप्त इच्धिय मूत्रेद्धिय भी है और भोगद्धिय भी। अब यह रहत्य
समझ ले कि बदि परमात्मा चाहता तो दोनों कामी के लिए अलग-अलग दो इद्विया
(अग) बना देता लेकिन ऐसा न करके उसने दाना कामों के लिए एक ही इच्द्रिय बनाकर
यह इशाश किया है कि इन दोनों इद्धियों जीभ और गुप्त इत्रिय से अधिक काम
नहीं लेगा चाहिए । जब किसी की कार्यक्षमता दो भागों म॑ बट जाएगी तो वह दानो भागों
में उतना काम नहीं कर सकेगा जितना अविभाजित हांकर एक ही भाग का काम करते
हुए करता श्कृति ने एंसा सिस्टम रखा है तो इसके पीछे ज़रूर कोई महत्वपूर्ण कारण
होगा हमारी दसों इच्धियों म॑ से सिर्फ इन दो इद्धियों की हो स्थिति प्रकृति ने ऐसी क्या
रखी है। इसे जरा सम्ई क्यांकि यह आपके पूरे जीवन को प्रभावित करने वाला मुद्दा है।
पहल जीभ के मामले को समझ ल!। जीभ का प्रयोग वाणी क रूप में जितना
फ़िया जाता है या किया जा सकता है उतना रसना (स्वादेन्द्रिय) क रूप म॑ न तो क्या
जाता है ओर न किया हां जा सकता है। किया जाना चाहिए भी नहीं। आप जितना
बालत हैं जितनी बार और जितनी देर तक बोलवे हैं या बोल सकते हैं उतना या उतनी
ख्जार या उतनी दर तक खाते नहीं रह सकते याने स्वाद लेने क लिए जीभ का उपयांग
कर) नहीं रह सकते। यदि आपको कोई स्वादिष्ट व्यजन पसन्द है ता आप उसके? स्वाद
का आनन्द लेने क लिए उसे लगातार खाते तो रह नहीं सकते जबकि आप घण्टों गंपशप
क् भकते हैं। हालाकि फालतु बारत॑ करना और ज्यादा बकबक करना अच्छा नहीं होता
क्यांकि शक्ति तो इसमें भी खर्च होती है लेक्नि इतनी मात्रा म॑ नहीं हाती कि हमें इसका
पता चल सके। इसका पत्ता तो तब चचता है जब कोई रोगी होता है और डॉक्टर उसे
बोलने के लिए मना करता है।
तो आप खान पने के मामले म॑ याने स्वाद लन के लिए जांभ का प्रयोग उतनी
मात्रा म॑ नहीं कर सफ्ते जितनी मात्रा म॑ वाणी के रूप में कर सकते हैं । अगर मनमानी
करके करते भी हैं ता पहले अपचब हागी फिर कब्ज याने मलावरंध हागा जिससे मल
कुपित होगा और अनक व्याधिया पैदा हा जाएगी । आयुर्वट ने चेनायनी द॑ रखा हैं -
सर्यपामेव रोगाणा निदान कुपिता मला (अष्टाग हृदय) यान मल के कुपित होन पर
कई प्रकार के यंग उत्पन्न होने लगते ह और यह सत्र महज जाभ के चटरेपन तथा
स्वास्थ्य रक्षक क्र्ष
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