सागर और सरोवर | Sagar Or Sarowar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sagar Or Sarowar by गुरुदत्त - Gurudutt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरुदत्त - Gurudutt

Add Infomation AboutGurudutt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नीचे लिए जा रही हूं। तुम पुरुषों में जाकर बैंठो । मैं झपनी युवा बहुओं से बातचीत कर अपने बुढापे में रस भरना चाहती हूं ।” इस प्रकार बात समाप्त होती देख लद्मी ने सुप्र का सांस लिया और गजाधर समझ गया कि उसको परदादी अपने परपोत की बहू से भ्रलग बात करना चाहती है। वह उठा और सुमेर के पीछेपीछे चला गया। रामेश्वरी ने लब्मी से कहा, “दियों, नीचे जाने से पहले मैं तुम- को एक बात समझा देना चाहती हूं । कभी कोई मनुष्य भस्धेरे में ठीक मार्ग पर घलता-चलता सडक के किनारे की नाली में पाव पड़ जाने से गन्दगो से मर जाता है। बुद्धिमान मनुष्य न तो बह गर्दगी भाने-जाने बातों को दियाते फिरते हैं, न ही वे टस गंदगी को भपने शरीर का अग समझने लगते हैं। बुद्धिमान लोग नाली से निकल किसी झुए पर जाकर प्पने पांय और शरोर को घो डालते हैं और पुनः कभी फिर भन्धेरे मे घलना हो तो हाथ में लालटेन लेकर चलते हैं । लद्मी समझ रही थी कि माजी सब बात जान गई हैं और वे भूल का कारण भी जान गई हैं। वह उन्हें इस प्रकार एक उपभा से बात समझाते सुन मन में कृतज्ता से भर गई 1 उसने उनके चरण स्पर्श कर कह दिया, “मांजी, भ्रव लालटेन से मार्ग देख-देयकर घलूगी । मुझे पता नही था कि यहां की सडक के किनारे गन्दी सालियां भी हैं।” रामेश्वरी ने लक्ष्मी की पीठ पर हाथ फेर प्यार दिया और कहा, “चलो, मेरी सब बहुएं और लड़किया, पोतिया, दोहतियां एक दूसरे देश की बहू से बातें करने की इच्छा कर रही हैं ।” नीचे घर की सब स्त्रियां इस बर्मी लड॒शी से ब्रातचीत करने लिये एकत्नित हो रही थी । गजाधर नीचे मय तो भपने वावा जुर्मी: मल्र के पास जा बैठा। जुग्मीमल के मन में ब्ह्मभोज का विचार उत्पन्न हो चुका था और वह उसके डिपर के योजना बना रहा दा । गजाधर को पाया देय वह बोला, “इधर झाझो, गजाघर 1 झह को कलम-दवात । जरा लिखो। मैं ह्थिःठः हे 1” ४ ब्यारह प्रुरोहित यज्ञ करने बारि--इक्पावन रपये पद नो कुल पाच सौ इकसठ रुपये ॥ हे # धागे सियो | पचाद इ झइ--ई सह रुप




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now