ग्वालियर राज्य के अभिलेख | Gwalior Rajya Ke Abhilekh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.63 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(है ) हो होगा परन्तु ाज यह ताम्रपत्र हमारे इतिहास की अमेक शुर्थियों सुलकों देते हैं। माहिष्मती के राजा सुचधु झ्रौर उनके द्वारा दान किया गया दासिलक पतली ब्राम और दानगृद्दीता भिक्षु सघ चले गये परन्तु उसके ताम्न-पन्र (६ ८ ) ने हमें यह वतला दिया कि मारी वाघ की गुहाएं जहाँ यह ताम्नपत्र प्राप्त हुमा है सुवन्धु के समय के पूबें की हैं। माजवे के परमारो ने तो अनेक ताश्नपत्रो में व्पना वरान्वृक्ष झागे के इतिहासज्ञों के उपयोग के लिए छोड दिया। वास्तव में उस दानी वश के ये दान-पत्र ( जिसमें झाज झमेक विदेशी पुरातस्प सप्रद्ालयों फी शोभा बढा रहें हैं ) तथा कुछ प्रस्तरो पर श्ट्ित उनकी प्रशस्तियों उनके इतिहास के ज्ञान के हमारे दढ श्माधार हैं | गन कूप वापी तड़।ग झादि का निमौण भी घामिक दृष्टि से ही होता रहा है। भारत में परोपकार या सावेजनिक हित करना धर्म के भीतर ही झाता है। इनके निमोणु के उल्लेपयुक्त भी अभिलेख प्राप्त हुए हैँ । पत्नी वर्म का त्यन्त हृदय-द्रावक रूप सारत की सती-प्रथा है। भारत की नारी का / झादर्श-पत्निस्य ससार के सास्कृ्तक इतिहास में अपनी सानी नहीं रखता । सारे जीवन सुख-दुख में साथ देकर पति के साथ ही चिता में जीपित जल मरने की. भावना भारतीय नारी के पातित्रत का ध्वलन्त प्रमाण है। उसको आदरपूर्ण श्याश्चयं से टेसकर भी उसके / औचित्य - को अनेक लोग स्प्रीकार नहीं करते ्रीर यह मीर्मासा पुरातत्व सम्पन्धी घिवेन्नन की सीमा में झाती भी नदी हैं। यहाँ इतना लिसना ही पर्याम होगा कि हमारे अभिलेखों में सय से झधिक सरया सती-स्तम्भों पर अट्धित लेसो की हो है। ५. 1 इनम सतियों की जातियों पर ध्यान देना भी मनोरजक है -ब्राझ्मण फायस्थ मद्दीर चमार ्माठि जातियों की खियो के सती होने के उन्लेस हैं । इनमें से अनेक जातियों में विधवा-विवाह बहुत प्राचोन काल से प्रचलित है फिर भी इन जातियों की स्त्रियों सती हुई हैं । कर .... इस राज्य की सीमांझो के भीतर स्थित सभी सत्ती-स्तम्भ देसे जा चुके हैं यदद नहा कहा जा सकता है। इसक विपरोत यद्द कहा जा सकत। है कि उन सचका देया जाना असभव ही हं। जो देखे गए हैं. उनमें प्राचीनतम सफरी (शुना ) का सबत ११०० का अमिलेय ( पट ) है परन्तु उसका सबत का पाठ झसदिन्ध नददी है। रतनगढ के संयत्त ११४२ के सतीस्तभ ( ५३) को पाठ स्पष्ट है और उसमें गगा नामक ख्री के सती होने का उत्लेस हैं । इसारे तिथि- युक्त मिलेसों में सबसे मतिम वि० संवत् १८८० का... नरवर का अभिलेख (५४२. है जिनमें सुन्दरदास की दो पत्नियों के सठी होने उल्लेख हैं। सती दोने की घटनाएं हो तो राज कल भी जाती हैं परन्तु उनके स्मारक बनाना राजनियम के विरुद्ध हैं । स्वु कि
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