रोबो | Robo
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रा «3
जम नभिह रेजिमेट ऑफिस की तरफ़ चले गये। कैप्टन काले बाहर ही
खड़ा था।
“जवान, पाड़े को पहचानते हो ?”
“पांडे भेरे ही सेक्शन में है, सर।”
“हाँ, वह् तो ठीक है, पर तुमसे उसकी ख़ास दोस्ती थी ना ?”
“ख़ास दोस्ती ? वैसा तो कुछ नही था, सर ।”
“नही कैसे ? मैंने तुम्हे कई वार आपस मे बातें करते देखा है।” जमंन-
मिह बीच में ही पूछ वैठा। डिकी कुछ कहना चाहता था कि उसके पहले
ही कैप्टन काले ने कहा, “हवलदार जमंनसिह, तुम अंदर चलो, हम भा ही
रहे हैं।”
हवलदार जमंनसिह दपुतर भे गया, उसके दूर निकल जाने के बाद
कप्तान साहय ने डिकी के कधे पर हाथ रखा।
“डिकी, तुम बंबई के हो न
डिकी ने गर्देन हिलाकर 'हाँ' कहा ।
“तुम्हारी और पाड़े की गहरी दोस्ती थी, यह मैं जावता हूँ । डिफी,
तुम इससे इकार नही कर सकते, और इसमे कोई बुराई भी नही, इसमें
तुम्हारा कोई दोष नही ।” कप्तान साहब कुछ देर रुके |
“कल रात से पाड़े गायव है, तुमसे कुछ बात हुई थी उसकी
“कल सुबह के बाद से उससे मेरी कोई वात नही हुई, सर ।”
“वह तो ठोक है, पर तुम्हे कुछ अदाजा तो होगा कि कहाँ है पाडे ?”
“सर, मुझे कोई अदाज़ा नही | सच, मैं कुछ नही जातता, सर ।”
“क्या जमेंनर्सिह पाडे को विना वजह परेशान करता था ?”
गवाड़े के साथ उस्ताद की कोई खास दुश्मनी नही थी, सर ।” डिकी
को पहली वार महसूस हुआ कि पाडे के बारे में वह कुछ नहीं जानता।
पिछले चार महीनों से वे साथ साते, साथ सोते; ड्रिल, राइफल ट्रेनिंग,
फ़टीग आदि हर तरह की रगडाई को दोनों ने साथ-साथ सहां था। फिर
भी पांडे के बारे में वह कुछ नही जानता था। पांडे उसके क़रीब आया था,
फिर भी बहुत दूर रहा था। कहाँ चला गया होगा पाडे ?
काफ़ी देर तक उल्दे-सोधे सवाल पूछने के बाद वः
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