कविता में जीने का सुख | Kavita Main Jeene Ka Sukh

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Kavita Main Jeene Ka Sukh by छविनाथ मिश्र - Chhavinath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रसममकश हो या मेहनतकश सभी शब्दों से जुड़े है हम एक दूसरे दे सामने यूयृत्तु मुद्रा में शब्दों की बुनियाद पर ही ग्यड़े हैं जहाँ हर सुद्दे पर अपनी-अपनी ट्स्मिदारी + सवाल जड है समय को बॉटने की ज़िम्मेदारी शब्दा की नहों-- इमारी है दरअस्ल, शब्दां का न ता बोइ धर्मक्षेत्र है और न कोइ बुरुक्षेत् यह तो सिर्फा हम हैं-- जो शब्दशीपी चेहर आढे हुए शब्दा वी आड में एक शब्द वी ओर से दूसर शब्द क सिलाप लड़ रह हें और शब्द क्रान्ति वी भृमिका में बजौफ एक सेमे से दूसरे खेमे तक टहल रहे हैं माल्तुम नहीं-- यह कसा फल्सफा है जिसक हर रूपज्ञ पर हमारे हिस्से का आसमान खफा है फिर भी शब्द कविता म॑ मनुष्य होन वी यत्रणा तराशते हुए सलीय दर मलीब झेलते टगे रहते ह लेक्नि जय भी कसी हमदद दास्त बी तरह हमारे करीब हते हैं इम बेहद सशनसीब हाते हैं | ० 25




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