रसयोगसागर | Rasayogasagar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rasayogasagar by हरिप्रपन्न शर्मा -Haripranna Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिप्रपन्न शर्मा -Haripranna Sharma

Add Infomation AboutHaripranna Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
60” ' हे जल्दीकरों अल्भ्यलाभसे वंचित न रहो शसयोगलागर--शद्वितीयभागमी छप्गया रसचिकित्साकेलिये इससे वढकर ग्रन्थ नहींदै-कारण कि इसमे दुष्प्राप्य और प्रामोणिक इस्तलिसित ५८ और मुद्रित ५३ अन्योंके रसोंका सदर पर तो प्रन्यच्तीने अपना अनुमद अकट किया ऐ-वर्तेमानसमयके अनुकूल मात्राओंके नि्धोरणपर विश्वेष विवेचन कियागयारे यहुतसे रस सह्नेतमे लिखेहुयेये जैसे कि,कासीसादिरसभ्रस्ृतिहँ उनका इछभी अर्थेन उगनेसे निकमी पड़े हुयेथे उनपर भाध्यकरके उनका भाग्य सुद्दाकरदियाहै। प्रन्थलेखकोंने जदाजदा कुछ गु्गम्यता रक्‍्खीथी उसेभी यथाशक्य विसष्ट कर दीहै। प्रन्याशय न्‌ धमझकर टीढाकारोंने जद्ांजदा दुछ गरूतिया कीहैं उन्हें सप्रमाण दिखाकर यथार्थ पिद्धान्तका आविष्कार कियागयादे। एकह्ि रसमे पद्वविशेषरचताके कारण आयेहुए औषधोंके नामान्तरोंको देखकर रसान्तरता समझ- कर जो एथक्‌ २ नामरखकर एकमारी जाछ फैलाया हुआया उसे एकान्तत दूर करदियागयार। बखु और फल समान दोनेपरभसी यत्किश्वित्‌ क्ियामेदसे जो रसान्तरता लिखीहुईंथी उसे सप्रमाण छिखझर लोगोंरीबुद्धिको उत्तेजितकीहै जैसे कि रविताण्डव्रणतिमेददे । दशवीशरसोंके मौलिकपदार्थ और प्रमाणों को एकन्रितकर योग्यताइ्लुसार उनको एकदोही रसोंमे सम्राविष्ट करनेवी युक्ति प्रदर्शितकीदे जैसे कि दिरप्यगर्भपोहलीप्रमति इनयुक्तियोंसे प्रन्थस्थरसों हिके' बनानेदी कुशलतामाय' प्राप्त नहीं द्वोतीदे किन्तु योग्यतानुसार नवीनरसोंके निर्माणकरनेकीमी बुद्धिमे जागृति होतीटै। अकारादिमातृकाजुसार रसोंकी ठिखनेसे विशेषअनुकूलता यह द्वोगई है कि क्रिसीवी इच्छा होवे कि अमिकुमारनामके कितने रस हैं, तय मातृकाकमत्ते प्रथम अमिकुमारसेलेकर अन्त्यतक देखजावैं बाजार भरा नजर पड़ेगा सख्याजाननेकी जरुरत दो तो भखीरकी संख्यादेख- नेसे संख्या भनायाससे माद्मदों सकेगी इसीतरह तमाम रसनामोंमे समझलीजिये, इसतरद भकारादितवर्गोन्त प्रधमभागह इसमे करीयन्‌ १८०० रसोंका संद्भद है । इसेछपे ३४ वर्षेहोगयेहेँ इसकामूल्य १ २) रुपयेहेँ । इसके भादिमे अग्रेजी और संरक्ृतमे दो विस्तृत भूमिकायें छिखीगईहैं उनमे दिखायागयाहैकि आयुर्वेदका अखिल चेदोंसे लेदर आजतक भ्विच्छिन्त चजा शारदा द--इसको देखकर यह सम्रमाण ऐिद्ध होजाताहै कि आजतक जितनीमी पद्धतियां (पेथिया) दुनियामे चलीहुई देखनेमे आातीहँँ उन सबका मूल भायुर्वेददे । सड्डोचविछासकीचर्चातो खतन्यदै बीज प्राय सहुचितभावहीमे मिलाकरताई । इसमेदियेहुये त्रिदोपबिवरणको अच्छीतरदद मनन फरनेसे तिदोषतिद्धान्तकितना उपयोगी और सह्यहै इसका शनायाससे पता चलजाताहै | उससे भाषतकके आयुर्वेद्सिद्धान्ताइनमिज्ञलोगोंसे कियेहुये आक्षेपोंका निराकरण होजाताई जऔ-र भवि- प्यकेठिये किसीभी व्यक्तिका आयुर्वेदकी नींव मन कल्पितसिद्धा तपरहै ऐसा क्हनेका साहस न द्वोगा। बौद्धसमयमे यज्ञ, और शक्नचिकित्सापर एकान्तत अ्ठुश दोोनेके कारण केमादि शारीराब्बयवोंगे छायेहुये घोराग्धकारका एकास्तत- नाशद्दोतातादे कारण कि सन्दिरधावयवोंका सम्रमाण बेद तथा आ्ह्मण और आारयुर्वेदीयसहिताओंके सूज तथा मन्नोंके दिये हुये उद्धरणोंसे सशय विच्छिन्न द्ोजातादै | ढाक्तरी तथा आयुर्वेदीय शारीरज्ञानजिज्ञासुओंकेलिये आपशारीरतत्त्व नामक प्रवरण तो एक अलश्यरत्नहे, इसरत्नका रसयोगसागरकों छोडकर अन्यत्र मिलनेका अभाव हि नहीं किन्तु असम्भवहै इसमें कईतरदकी विशेषतायेंदँ उनका रहस्यज्ञान बिना मननके नहिं दोसक्तादै इसतरद इसकी भूमिछा वैद्य हकीम डाकतर याशिक तथा सशोधकोकेलिये बहुतही सद्दारेढी वरुदै। रसयोगसागरके द्वितीयभागमे पकारादिस्ञपयन्‍्त २०८२ रसहैँ इसतरद इनदोमागोमे यह भ्रन्य समाप्त हुआहे । इसकेबाद अग्रोव्‌ ४० ६१२ से-६२३ तक सिद्धसम्प्रदाय अथोत, अगर्य और ब्यासप्रोजरसप्रकरण दियाहै यह बहुतही मइल्लका है । इसकेबाद प्रष्ठ ६२५ तक आनश्रादिदेशप्रसिद्ध ऋृष्णभूपालीयप्रस्तिम्रन्थोंके श्रयोग दियेगयेहँ। इसक्रेबाद क्ईकारणोंसे सड्भइकरनेकेसमय दोनोंभागेंकि छूटेहुये रसोंका एृठ्ठ ६४३ तक सद्भहहै । इसकेबाद सद्भहकरनेमे छूदेहुये प्रन्योके नाम तत्तर्सोमे दाखिलकरनेकी सूचना पृष्ठ ६६१ तक दीगईहै । इसके वाद आपातत पश्रतीयमान विभिन्नरसोंक्रे एकीकरणका दिग्दशन करायाहै। ६६३ (४से आगे प्रन्थान्तरमे नामान्तरसे आयेहुये रसोंकी सूची दीगईदै-जिसरसका दोनों- भागोंमे पता न चछे और देखनेवालेकों दूसरे नाम यादहोवैं उनलोगोसे प्राथनादे कि वेलोग इससूचीको देखनेझा कशकरें इसमे उन्हें यद्द पता चल जागया कि इसरसका यथार्थनाम यह है उसे देखकर भाइन्ददकेलिये उसीनामसे उसका व्यव दवारकरें इसकेउदादरणार्थ अमरसुन्दरी अन्त स्थ ५०४ मे इसकानाम विजयमैरव आयाद सो वद्ापर देखनेसे इसके प्रन्यमेदोंसे कितनेनामर्दँ और क्या २ विशेषदँ इसकापता अनायासस्े चलजायगा इसीतरह अन्य २ रसोशेमी देखनेका कष्ट करें प्रथमभायके छपनेपर बहुतसे वैद्यमद्ानुभावोंक्रे आश्षेपसूचक पत्र आयेथे कि रसयोगसागरमे इतनाप्रसिद्धभी रस छूटगया सो उनसजनोंके लिये यद्द सूची दीगईदहे जिससेकि उनका वह अभम दूरदोजाय, देखिये इसीरसकी टिप्पणीमे इसके ८।१० नामआयेहैँ उनमेसे जो आदमी इसे चद्धप्रभाके नामसे जानता होगा बह चन्द्प्रभाकेपाठोंमे इसे न देखकर मनमे जरूर कद्देया कि इसमें सद्भइकर्ताकीभूलदै परन्तु वहां ऐसा मनसे न छाकर इससूचीको देखनेका कश्करें इससे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now