षट्खंडागम | Shatkhandagam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ -. पट्खंडागमकी प्रस्तावना लेकाम्बिकाके पुत्र तथा यहुवंशी राजा नारसिंहके मंत्री कहे गए हैं | इन यादव व होग्सल्व॑शीय राजा नारतिंह तथा उनके मंत्री हल्लराज या हुल्लपका उल्लेख अन्य अनेक शिल्लेखेंमें भी पाया जाता है, जिनसे उनकी जैनधर्म में श्रद्धाका अच्छा परिचय मिठता है। (देखो जैन शिलालेख संग्रह, भू. पृ. ९४ आदि ) | पर उक्त विषय पर प्रकाश डाल्नेवाछा शिलालेख नं० ३९ है जिसमे देवकीर्तिकी प्रशस्तिके अतिरिक्त उनके स्वगंवासका समय शक १०८५ सुभानु संकसर आपषाढद शुक्ठ ९ बुधवार सूर्योदयकाल बतछाया गया है, और कहा गया है कि उनके शिष्य लक्खनंदि, माधवचन्द्र और त्रिमुवनमछने गुरुभाफिसे उनकी निषदाकी प्रतिष्ठा कराई । देवकौरतिं पद्मनन्दिस पांच पीढ़ी, कुछभूषणसे चार और कुछचन्द्रसे तीन पौढी पश्चात्‌ हुए हैं | अतः इन आचायोको उक्त समयसे १००-१२५ वर्ष अर्थात्‌ शक ९५० के लगभग हुए मानना अनुचित न होगा। न्यायकुमुदचन्द्रकी प्रस्तावनाके विद्वान्‌ लेखकने अद्यन्त परिश्रमपर्वक उस प्रन्यके कर्ता प्रभाचन्के सप्यकी सीमा ईस्वी सन ९५० और १०२३ अर्थात्‌ शक्ष ८७२ और ९४५ के बीच निर्धारित की है | और, जैसा ऊपर कह्म जा चुका है, ये प्रभाचन्र वे ही प्रतीत होते हैं. जो लेख नं० ४० में पद्मतन्दिके शिष्य और कुडमृषणके सधम कहे गए हैं। इससे भी उपयुक्त कालनिणेयकी पृष्ठि होती हे | उक्त आचार्योके कालनिर्णयमें सहायक एक और प्रमाण पिता है | कुलचन्द्रमुनि के उत्तराधिकारी माघनन्दि कोल्छापुरीय कह्टे गये हैं | उनके एक गृहर्थ शिष्य निम्बंदेव सामन्‍्ते का उल्लेख मिलता है जो शिलाहार नरेश गेडरादिल्वदेवके एक सामन्‍त ये | शिलाह्ार गंबराद्धियदेवके उछेख शक से १०३० से १०५८ तक के लेखेंमे पाये जाते हैं । इससे भी पृर्वोक्त कालनिर्णयकी पुष्टि होती है । पद्मतन्दि आदि आचार्योकी अशस्तिके सम्बन्ध अब केबठ एक ही प्रश्न रह जाता है, और बह यह कि उसका धवलाकी प्रति दिये जानेका अभिप्राय क्या है ! इसमें तो संदेह नहीं कि वे पद्य मुडविद्रीकी ताडपत्नीय अतिमें है और उन्हींपरसे प्रचाडेत प्रतिलिपरियोमें आये है। पर वे घबलाके मूछ भेश या धवलाकारके ढिखे हुए तो हो ही नहीं सकते | अत; यही अनुमान होता है कि वे उस्त ताइपत्रवाली प्रतिके लिखे जानेके समय या उससे भी पू्वकी निस प्रति परसे वह लिखी गई होगी उसके छिखनेके समय प्रक्षिप्त किये गये होंगे | सभवतः कुछभूषण या कुलचन्द्र सिद्धान्तमुनिकी देख-रेखमें ही वह प्रतिरिपि की गई होगी | यदि विधमान ताइपन्र की प्रति लिखनेके समय ही वे पथ डाले गये हो, तो कहना पड़ेगा कि वह प्रति शककी दडा्बी १, जैन शिलालेखपंग्रह, लेख व, ४० २, 5प्रोधक्रैगाक ठ981 इणाएहणा ण॑ एिगरा॥एुपा, तर (ाशा8 91208108। 09076 ०1 ५1019 97% न्यायकुए्ददचल, भूमिका पृ. ११४ भादि,




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