बात जो बोलेगी | Baat Jo Bolegi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.64 MB
कुल पष्ठ :
115
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुनाली बन्दूक लिये हुए था, उसने इस पर कहा--साहब को जाने दो,
रास्ता साफ कर दो । और उसने जाते-जाति मुझे सलाम भी किया ।
इस प्रकार बच निकला पहली वार !
अब आइये वताऊ यायावरी की दूसरी रोचक घटना । पटना से दिल्ली
और दिल्ली से पटना लगभग २५-३० वार मैं कार या जीप से गय। हु और
अब भी साल में एक बार सड़क मार्ग से जरूर आता-जाता हू। तो हुआ
यह कि एक वार जब वरसात के दिनो में पटना से दिल्ली को राह में था तो
इलाहावाद और कानपुर के वोच में खोरों के ढेर के ढेर खेतों के किनारे
लगे दिखाई दिये । एक जगह गाडी में कुछ गड़व डी देखने को रुका तो उत्सुकता-
बश खीरों का भाव पूछा, वेचने वाले ने १० रु० का सौ बताया । मैंने थो
ही कह दिया ८ रु० का सी दो ती सारा खीोरा खरीद लू । वह तैथार हो
गया | अब मेरे लिए भागने का कोई चारा ही नहीं था । कया करता, बिना
सोच-समझे वोल गया था । गिनती शुरू हुई, लगभग १३ सो खीरे थे । उनका
दाम चुकता किया और पूरी जीप में खोरा भरकर भागे वढ़ा । अब इन
खीरों का कया करूंगा, यही विचार मथे जा रहा था और इसी सोच-विचार
में कानपुर पहुंचा । खीरो से भरी जीप को लेकर किसी होटल में या
किसी परिचित के यहां जाने मे भी सकोच का भान हो रहा था । भला करू
तो क्या, कि तभी हमारी नजर कुछ ही दूरी पर खीरा बेचते हुए वच्चे पर
पड़ी। मैने अपने आदमी को भाव जानने को भेजा, तो पता चला कि
२४५पैसे में एक। लेकिन उनका आकार हमने जो खरीदे थे, उससे छोटा
था। मेरे मन में अकस्मात् यह विचार आया कि कानपुर में जत्र खी रा चार
आने का एक है, तो निश्चित रूप से दिल्ली मे इसका भाव ज्यादा होगा, तो
क्यों नहीं दिल्नी ले चलकर अपनी किस्मत को आजमाया जाये । मजाक ही
मजाक में सारी बात मेरे विचार में आ रही थी । और इसी उधेड़-बुन में
खोरो से भरी जीप को लिये-दिये पहुंच गया दिल्ली । तकलीफ हुई तो यहीं
कि यह खीरे नहीं हीते तो रास्ते में रुकता, अलीगढ़ में मित्रो से मिलता-
जुनता--लेकिन खीों ने सारा मंसूब! ध्वस्त कर दिया था ।
कई बार राह चलते मजा आ गया / १५,
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