श्रृंगार शतक | 1451 Shringaar-satak (1947)

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1451 Shringaar-satak (1947) by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरड्वार-शतक [ ४ जिसे अपने आधीन करने की आज्ञा देती हैं, बह उसको अपने पुष्पायुध से क्राबू में करके, अपनी स्वामिनियों के हवाले करदेता है। कामदेव ही नहीं, स्वयं परमात्मा स्त्रियों के इच्छानुसार चलता है । अ गरेजी में एक कहावत है --“ए19 फ़0एएक्रार फा]8, 06. कर! 8 ” जो खरी चाइती हैं, घही परमात्मा चाहता है। ब्री और परमात्मा को एक ही इच्छा है । दोहा विधि हरि हरहु करत हैं, ख़गनैनी की सेव । चचन झ्रपोचर चरिंत गति, नमो कुपुमसर देव ॥ १ ॥ सार--कामदेव ने ब्रिलोकी को ख्ियों का गुलाम बना रखखा हैं । 4. 1 0ैफ 10 एक 11020. रिक्राशते०ए9, (पृ) फोग0 पक53 पि०ला8 दि णिड सा . शध086 फणातछापएी शाह छार 08पणते फि6 076 0 88801 क 0 फोए0ए डिंएक्ा ऐप, पि6 उिहा-ए0ण४ ( जिधताए ) क्ाापे पीद्ता 86 0७8 एलातला 8 00080 द6एएकाएड 01 ही18 ते6७ा-8४60 फ्रणणाा ५. ताइएीकए86 पिएछा 0080-10] ऐपा108 रिमतेन भावेन च लजबा मिया | चर न पराडमुखरद्ध कटाक्षवीक्षण: । _ चचोमिरीप्याकलहेन लीलया | समस्तभातरै: खलु बन्धनं ख़िप! ॥२॥।




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