जादू का मुल्क | Jaadu Ka Mulk

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Jaadu Ka Mulk by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शास्य-निर्णय श्डे बचावें । बन्द्रक कारतूस कुल्हाड़ियों के अतिरिक्त अब हमारे पाफ़ कुछ नरहा। सचमुच फ़ितने ही चुद्धिमान्‌ और धैर्पशीरू पुरुष के किये भी उस समय उसकी रक्षा में कुछ करना असम्भेव था । रस्सा टूठते ही मांगा घूम गया पानी की धार ने जो एक बार जोर किया तो नाव करवट होकर. उलट गयी । नाव फिर उड़ चली । भागते-शागते जब बहु प्रपात पर आयी तो ऊपर से पानी के साथ नीचे वाले पत्थर पर गिरी और चूर-चूर हो गयी । देशी जो कि टूटे रस्से को पकड़े हुए पीछें के बल गिर गये थे चकित और भयभीत दूष्टि से वहीं किक्तेंव्यविमूढ़ हुए पढ़े रहे । सत्य एक भी दाव्द मुंह से निकालने में असमर्थ था । और नरेन्द्र के विषय में ? उन्होंने एक बार देखा फिर दिर का पसीना पोंछा और कहा-- फ़त्य अब हम फटकचन्द गिरधारी हैं। हजारों कोफ़ दूर इस निर्जन बन में थोड़ी फ़ी मीठी टिकिया और औफ़धपेटिका के अतिरिक्त हमारे पाफ़ कुछ भी खाने को नहीं है । ) लड़के ने उत्तर दिया-- निक्वय । किन्तु इस जंगल में हैं । बहुंत कुछ उम्मीद है कि यहां हमें मकोय करौंदा बेर या और तरह के फल मिलेंगे । _ नरेन्द्र--मिंने किलाबों में पढ़ा है कि अफ्रीका के जंगलों में कुछ खोज पाने की जगह भूखों मरना ही आफ़ान है । मेरे खयाल में यहां झरबेरी होती है यदि हम उफ़े खोज पायें । देफ़ी लोग उफ़का फ़सू बनाते हैं । कच्ची दफ़ा में बह कुछ॑ विरफ़ेंठी होती है यद्यपि इफ़ पर आदमी कुछ दिव तक जी फ़रकता हूँ । लड़के ने .कहा-- नहीं यहां इस जंगल में अवश्य आदमी होंगे । फिर वह कया खाते हैं ? नरेन्द्र-- फ़त्य वह मुझे और तुम्हें खाते हू--वुमको पहिले क्योंकि तुम. लड़के और मुलायम हो । नहीं अच्छा जेफ़े इच्छा हो बैफ़े खयाल करो किन्तु फ़बफ़े अच्छा उपाय थहीं है कि जितना जल्दी हो फ़के कांगो लौट चलें




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