वायु मंडल | Vaayu Mandal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.98 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कल्याण वक्ष माथुर - Kalyan Vaksh Mathur
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विचय-म्रवेदा ] १७ च्स्काय दस प्रायः आकाश तारे टूटते हुये देखते हैं । यह पंत्थरके बड़े-बड़े टुकड़े हैं जो आकाश चक्कर लगाते रहते हैं और प्रथ्वीके वायुसंडलमें प्रथ्वीके गुरुव्वाक्षण (78.४ 1- ए8711 100 से अधिक वेगवान हो जाते हैं । उस समय इनका वेग लगभग १५ य २० मील प्रति सेकंड होता है । इनके अधिक वेगके कारण वायुके घब॑णसे यह इतने श्रधिक गरस हो जाते हैं कि चमकने लगते हैं अतः हम इन्हें देख सकते हैं । इन्हींको उद्का ( ए16( 07 ) कहते हैं । इन उल्काओंके पथ तथा किरण-चित्रसे वायुमंडलके ऊपरी स्तरोंका घनत्व तथा बनावट निकाली जा सकती है । लिंडमन ( 1.180111 11 और डाबसन ( 12010501 3 ने उस्का्ओंके पर्थोदी जाँचसे यह मालूम किया है कि ऊपरी स्तरोंका तापक्रम २५श के लगभग मानना पढ़ेगा 1 स्यातिय यद्द बात सबको विदित है कि इथ्वीके॑ घ्रुर्वोके निकट छुः मास लगातार रात तथा छुः मास लगातार दिन होता है। वहां रातमें बिव्कुल अंधकार नहीं रहता बदिकि कभी- कसी पीली या नारंगी रंगकी दीप्यमान ज्योतियाँ इष्टि्गोचर होती हैं। उत्तरी घुवकी ज्योतियोंको सुमेरु-ज्योति (.& 01012. 0768] 8) तथा दक्षिणी घ्रुवकी ज्योतियोंकों कुमेरु-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...