हम्मीर महाकाव्य | Hameer Mahakavya

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Hameer Mahakavya by ताऊ शेखावटी

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हम्मीर महाकाव्य 15 हम्मीर का यह उत्तर यद्यपि खिलजी को नागवार गुजरा किम्तु- वीं महाहठी है आआगै पण घात्यों कोई भी दाय नहीं11८२१1। फलस्वरूप तीसरा युद्ध भी हुआ और उसमे भी शाही सेना पराजित हुई तीसरे युद्ध की समाप्ति के पश्चात्‌ नर्तफी धारादे की कथा को आघल मे समेटे इस चित्र काव्य की कथा घीरे-धीरे चौथे युद्ध की ओर बढ़ती है। किन्तु राजपूतों के शौर्य एव एकता के सामने उस चौथे युद्ध मे भी शाही सेना टिक नहीं सकी । ऐसी पररिथति आ यात समझग्यों हो खिलजी रण करण खुदा भी आज्यादै। पिन फूट पड़यों रजपूर्तों में ओ गढ़ कोर्नी जीत्यो जावै। 1६७८ 11 थही सोच कर तय उसने कूटनीति से काम लेते हुए हम्मीर के पास पुनः एक संघि प्रस्ताव भिजवाया और किसी निर्णायक हल के लिए हम्मीर कें सेनापति रतीपाल को अपने पास बुलाने में सफल हो गया। जब रतीपाल खिलजी के खेमे में पहुंचा तो खिलजी ने मान मनुहार करते हुए उसे रणथमोर के सिंहासन का लालघ देकर अपनी ओर कर लिया। रतीपाल के साथ ही हम्मीर का प्रधान मन्री रणमल भी खिलजी से मिल गया। अपने इन दोनो सामतों के विश्वासघात से हम्मीर बुरी तरह से टूट चुका था। ऐसे में पटराणी रंगादे ने उसे आपातकाल मे भी कर्म से विमुख न होकर धर्म पर डटे रहने की सलाह देते हुए कहा-है घरम छत्रि कुछ रो ओ ही नहिं कदे धरम रयूँ मुँह मोर 11१०६२11 अत हे नाथ इस घटना को अधिक तूल न देकर आप तो सदैच सत-पथ पर डट्या र वो चाए होपै मौसम प्रतिकूल घणो 1 1१०द३।। तब हम्मीर ने धर्मयुद्ध की ठाने ली। सभी किले वासियों को सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाली गई। शरणागत मोहम्मदशाह कौ भी हम्मीर ने किले से बाहर किसी सुरक्षित रथान पर चले जाने का आदेश दे दिया। रनवासे में रानियों को जौहर के लिए सदेश मिजवा दिया गया। हम्मीर की बेटी देवलदे ने पद्मला तालाब में कूदकर आत्मोत्सर्ग कर लिया | देवलदे के इस आत्मोत्तर्ग में कवि की लेखनी बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से चली है। यहा नारी धन की अहवेलना के प्रति सचेत दुआ कवि कहता है- मौको मिलियों हर छेत्र माँय मरदोँ पर नारी भारी है। पण पच्छपात लिंगीय नीति नारी धन की लाचारी है।1११२४।। शरणागत मोहम्मदशाह ने शव हम्मीर का साथ अंत तक नहीं छौडा | प्रस्तुत महाकाव्य मे उसके परिवार के आत्म बलिदान का वर्णन भी बड़े ही मार्मिक ढंग से हुआ है। बइररलाद की मृत बेगम को देखकर भाव विहुवल हम्मीर का र्यर सहज ही फूट पडता हो गयो धन्य रै मोमदस्या मैं देख त्याग लेरो भाया। दुनियाँ राखैगी याद सर्दों .. रिस्तो तेरो-मेरो भाया11१२४३11 डक मुसव्ठमान होय र शी लूँ अपणा-सी प्रीत निभाई है। पिछलै जठ ्मों रो सायद लूँ मेरो माँ जायो भाई है 1१२४४ (17




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