महाविद्या | Mahavidya
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.53 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किजो श्रनादि काले से हे भर जा करपना अथवा निचार |
में नहीं आप्तती, तथें शिलुकों 'परब' अधता जरवाने कर |
कहत द उसही मे से यांटि उत्पन्न होती € आर नियत समय |
पर्येत अस्तित्व में रहरूर फिर पा़े उसही में लय दोनाती हे |
रन्त जो सृष्टि उत्पन्न होनेके आरम्भ में 'छागास' नामक शक्ति |
ास्तित्व में भाती हैं वह स्वयंही आसाप्त सहित हो गौर जो |
उसके श्राभास सेही सष्टि का काम चलता हो तोकिर उसकोही |
| एक इंश्वर कहन मे कया हानि है
थि०--वहहीं इंस्वर कहने भ आता है क्योंकि समस्त साष्टि |
म सबसे पाहले का ज्ञात ( जानने वाहा अथवा आभास घारण ह
फरने वाला ) वहीं है । और, उसमंसेही 'अगगितज्ञाता श्रथंत्रा
जि, किंरणको रूपमें प्रथक होगयें हैं । सबसे गप्त अथवा छिपा
पदार्थ यह शक्ति अथवा इश्वरहां है, समस्त नाव इसहां शक्ति |
; से पृथक होकर फिर स्वयं अपन का पहचान उसग मिलजातह !
। हों की मुक्ति-हुई कही नाती है । ऐमी दक्तियं *परत्रह्न के |
मातर ता श्रगणित हैं परन्तु -एसा होते हुएमी इश्वरको एकही !
गिनना चाहिये | तस॒ही वह समस्त सष्टि क ऊपर अथवा वह !
!! उससे पथक नहीं हे परन्तु समस्त साष्टे में रहे हू चेतेन्थका मुख
क बिवलकतणजजरपबसायाडरययबयसररससयस्यस्थर्जससमपिपयससप्ससससावर्थ रब!
|इदाटवा .. कज़दकदऊदबचयादसा *. स्थल
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