दास्ताँ अमीर हमज़ा भाषा | Dastan Ameer Hamaza Bhasha

Book Image : दास्ताँ अमीर हमज़ा भाषा  - Dastan Ameer Hamaza Bhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोस्तान अमीरंमज्ञा भाषा न तूँने कोश गिलेमानसे कई सहसमेह़ेलेकर मोलेसांगनि के संसयः उतंकोश्मारकर अपनी दूकाने की कीटरीमें गा दियाहै उस विश्वरिशका सह किपयेका धंन सिंह जहीमॉरलियांदे हूं जॉरता- नहीं हे+कि जो उसकी सिन्तान की रोजसभा में भेज तुमे उस परोध का रह्दिखिलाएं?मासि की हव्य तुरे दिलदिं्लील सुर्कसे मगिता हैं एसी अयानेबेठाह यह समाचार सुरनेकर गायक स्वाति कॉरपरनेलिंग और अति शीघेदोडके चरणों परे गिरा और ध्मंतिमं्ती संपगिडंगिड़ाकिर कहनेलगी किमी तोक्या मेरी जीमेंभी व्यापपेर नि्ावरहे-जितिनी सरकारकी दौसी।ध्याज्ञा करेगी उतना सांस करेंसीमकें-दिनिप्रति टंगा/ओरावॉलि से उसेंकें मील का सर जीसपर न लाउंगा घरन्तु/मेंरी/जार्न वंमतिछा परुकिपारटि किये रीदेर्यगा फिर किसी ऐसी वाति न केंहियेगा.हलीमाति सिर की भी कुरकुसमाचार सुनकर घेवरा दिया था योर उससे पैचि/भीहरदिंनंवीरी ) सच के निभितति/ हिककर लियान्थी धानन्देम्य हो अिपेने/घर में बेठकर समय की लोॉज करेनेलिंगा पित्रि हनेहिंनििये इकट्ठा हॉनेलेंगें सुंधे-ब्रेमोनर्द करने लिरगटिरिगर फिगाएक जाफा पीट कॉनिएं फ सोरठा । श्रश्नभसगुर्न हजीत जिंवउंदास्ती परम करे । कीरमइरपीडितास सिर्सनिकिरे द्िंतिमगति है॥ 77 अलकर्श के स्व शनि भन्यायी नाम वीपीमे पर्िशोंसि फे ज्ानिका हू हू रहफ . वृूक्षि.चां्धनेवीलिवारा वृत्तिन्त कें्योराक्िलविरी सुशिोमिंत.करनेवाले्रारभविदित करना स्वच्छ कार्रीज़ में इसप्रिकारपेंडा्ब्दी क्र डतितःखचितक्ररति झर्थात्‌ वर्णन करते हैं किं/जब बशि झन्यायी वनरकेरतियार हॉगिया ज़ेसे वैंकुरार्-की श्रांति/सुशो मिर्त घर प्रिफुर्लितिहुआ उसंसमयअविकर्श/झंतिप्रसंत्रता से नफलगंपातसत्देहिःद्ोनों स्थिनका मूततियाडासन्ते।मानन्टसि फरर्लदित संमतिएतनसोावाहर्रहुपानजिता चीदशाह कैःसमीप-ज़ाकर सितिरीनता सिं थार्थला की कि इस सेवक नेव्ञापके प्र्तापसि/रिकवारा/खर्सायारहि उससे साति 2 केवक्षमलिदीरी औरर्फूल/बटे के लिगाया हि श्र दूर एसि भारी मोल फ्रेसुन्दर दक्ष मैंगाये हैं।ॉरडातितीव साली वेंडिबांधनें करे हे नियत हैं संदेखों पिया खर्च-क्ररकेडिसिका्ी केकरारीगर मैंगाये है दंत्येकम्मपुष्यश्यि २ काम में एातिचालीकि हिं झीरु बेल्पूठेइलप्रिकार-सि लंगसि/हिं।कि जिनको. दे खिकरुविर्लफ्रमाडपर्नी-रवनार्से लज्जिताहीजाजे सरस्तु इसि अनुचर्की दृष्टि में तर्माता हीं हैपिर्तिमाराका रे दीस पढ़ताहै जुब्तंकामीप सवार हो उसमें पनीव्वरण/सुलक्षण नहीं शरते हिं प्रानना छ नि तीनियू तक दस ब्ससयरकिपेय सकती सिलिशा जिस लानत ४ंदर्का झूुल मशररियधिगूहिगा निइसलिधीनेकी- विनय पे हिकिकभी दया उसे श्र शेरक बहोनि शरण लेजायि तीस अर्थीनकी्विन्त विड़ाई प्रति हो पिंक बेरेशों की कपी से दस वा मिंजसन्तकर्तुत्माजीय ररल वक्त में सेयरिक प्रकाशित हीजांय अपनीक्पसि जी दो एके थे तो अनचर की झंत्यन्ते आनिर्देमिलिश्रोर |




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