वीर अर्जुन | Veer Arjun

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Veer Arjun  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बीर जज ने ( सायाहिक ) है ० दिसम्बर १६३७ ईं० को भारत के विभिगन प्रान्दों के अनेक प्रमुख ऐविं- झठिकों शोर इतिहास प्र मियों ने मारत- मात मन्दिर बनारस के जञागन में मर- सीव इतिहास परिषद्‌ की स्थापना मिल- कर की । उस दिन उन्होंने परस्पर सदयोग दारा अपने देश का एक सच्चा समन्व यात्मक भर पूण इतिहास प्रस्तुत करने का सकल्प किया । इस काये के लिए देश में बिखरी शक्तियों घर साधनों को खुयने की खातिर उन्होंने एक भारतीय अध्ययन मन्दिर की योबना पर विचार किया और उसके सत्र को इतिहास तक परिमित कर उसे मारतीय इतिहास परि दस नाम दिया | सन्‌ १६३७ का मारतमाता मन्दिर का वह छुटाव उससे पहले की प्राय चार दशाब्दियों की चेश का फल था। भारतीय इतिहास परिषद्‌ ने । न आदर्शों म्रेरखाओं श्रौर विचारों को लेकर काय खेत्र में प्रवेश किया इसे समभने के लिए उन पदली चेशभ्ों का इततान्त ब्ानना आवश्यक दे । वह इत्तान्त इमारे समकलिक इतिहास का एक रुचिकर स्थर शिच्षाप्रद प्रकरण है । पहने मारतीय पूरातलान्वेषी हमार देश की परिस्थिति के 2२ सत- लावद्ध झ्ययन का और हमारे इतिहास के पुनर्द्धार का श्रारम्भ युरोपी विद्वानों की सूऊबूफ और चेश से हुआ इृतमें सन्देद नहीं । किन्तु उन्नोषवीं शताब्दी के उत्तराधे में शनेक मारतीय विद्यान्‌ भी उसमें उल्लेखनोय भाग लेने लगे | उनमें पहले झयुतों में स्वर्गीय राघाकान्त देव माउदानी भगवानलान इन्द्र थी राजे स्द्रलाल मित्र रामकृष्ण गोपाल मा रकर हरप्रसाद शास्त्री विक्रमतिंह गोरी शकर हीराचस्द्र झामतर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । उनीसवीं शताब्दी के श्न्त तक मारतीय्र पुरातत्व की. खोब टुकड़े टुकड़े करके इतनी सामअ्री जुगाईँ चुकी थी कि उसके आधार पर मारतवर्ष का पूरा इतिहास बनाने की चेषायें भी होने लगीं । इस प्रकार की पदली चेाओं के उल्लेग्ववोग्य फ्ल रमेशचन्द्र दत्त का प्राचीन मारत की सम्यता का इतिहास १ श्प्सू६ ) तथा इस्प्रसाद शास्त्री का पमारस का एक शालोपयोगी इतिहास (ए स्कूल हिस्टरी आव इशणिडया ) रु श्पह७ ) थे। भारतीय दृष्टि का उदय इरप्रषाद शास्त्री की उक्क पोथी आधुनिक खोज के आभार पर लिखा डुझा मारत का पहला पूरा इतिंदास थी और अनेक झ्रशों में वह आद में चले हुए पादूय प्रन्यों से कहीं अच्छी थी । लेकिन उठका चलत नहीं हुआ । उसके छः बरस बाद १६०३ में शनंसे और (रे) अरादनकूनरमययनकविदपयययदयमलजपदकयययननननयन कम कनयकययिययम्येथ स्टाकं की वेली ही पोथी कटक से निकली तथा शन्‌ १६०४ में विम्सेंट स्मिथ का मारत का प्राचीन इतिशास झाक्सफडे से । स्मिथ का प्रन्य भारत के शिद्रलायों में खूब चला । इरप्रसाद शात्त्री के श्न्थ का चलन न होने श्रौर स्पिय के अन्य का भरपूर प्रचार होने तथा अनेक भारतीय माषाधों के लेखकों द्वाय भी उसकी नकल किये जाने पर शराब इस विचार करते हैं तो उसका स्पष्ट कारण यह दिखाई देता हे |क स्मिथ के अन्व में इतिहास की घटनाओं को इव तरइ ठोढ़ मरोक कर पेश किया गया था कि एशि याई लाठियों को भ्रपेद़ा युराप डी गारो नातिवों का सनातन उत्कप परहट दो भारत के श्रप्रेथ शासकों को मारतोय विद्यार्थियों के मन में वेसे सश्कार ढालना अझमिपेत था श्लार भारत के बहुत से शिद्चित लोग मी श्रपनी गुलाम मनों बत्ति के कारण एक श्रग्रेथ किम के लिखे हुए भौर श्राक्सफड़े से प्रद्माशित ग्रन्थ को एक भारतीय विधान के लिखें कलकतत से प्रकाशित ग्रन्थ से अधिक महत्व देते थे । पर इस युरोपी टॉंग तथा इस गुचाम मनेभति के खिलाफ सप्रषं करने वाला चेश को लय लिये हुए थी। विनायक खबरकर का मारतीव स्वावलप का युद्ध का इतिज्वस ( १६०८ ) उस सास्कृतिक चेश का फल था। इस निवांसित दल के नेता थ्रों श्वाम थी कृष्ण वर्मों एस० झार० राना दरदयाब और विनायक सावरकर से तथा आक्सफड के अपने सिंद्ल श्रष्यापक विक्रमतिद से वहा के एक छात्र काशीप्रसाद॒ चायसवाल को इतिहास का गहरा मनन करने को प्र रणा मिली । नायसवाल ने मारत लौट कर सन्‌ १६११ से १६१८ तक था काम किंग उसने इतिहास के च त्र में स्वतत्र भारतीप चिंतन का एक अढ़िया नमूना उपस्थित किया और दूसरे श्रनेक दिद्वानां आर विद्याथियों में स्वतन्त्र सोचने का उत्ठाइ जगाया । चायतवाल की खोज ने पहले पदल यह प्रमट किया कि. हिन्दू कानून का किस प्रकार मानव सत्याओं में कपविकास हुआ । उन सस्याओं को शोर उन्होंने ध्वान दिवा तो प्रकट दुआ कि प्राचीन मारत में कानून बनाने और राज्य को. चलाने बाली वत्यामे प्राय इबार डेट हनार वष तक बराबर काम करती थीं। इन खोबों से प्राचीन मारतीव राज्यसस्था इतिहास में मारतीय दृष्टि का रिकास (९१ पोष सम्बत १००४ है समन्व यात्मक इतिइस की माँग (१४१४-२१) यों पदले त्रिश्व युद्ध के चस्त तक विभिन्न श्रशों और पहलुओं में रूतत्र भारतीय इतिदात चिन्तन वीं. विशेषता सामने श्रा गद था। रस दृष्टि से समूचे इतिहास की खोज के 2 कु गाजद्ध धायों लन श्र उसके समन्वय की श्रावश्यकता इसके बद स्वष्ट दिख ई देने लगी । कहते हें मनमोहन चश्वर्ती ने सन्‌ १६०८ में ही यदुनाथ सरकार का ध्यान मारत के वेमे एक इतिहास की आवश्यकता की श्रार खींचा था। सन्‌ १६१८ श्र २६२० में राखालदास बनी ने फिर उन्दीं विज्ञान के साथ उसका एक खाद खींचने की कोशिश की । कागड़ी का गुरुडुल इमारे देश में राष्ट्रीय शिद्या की पहली सस्था थी जितमें झाघुनिक विज्ञान दर्शन श्र इतिहास का एक भारतीय भाषा में पढना-पढ़ाना शुरू किया गया । स्वदेशी श्रादोलन के समय से वहा यह ठिलतिला आरी था । पहले श्राठ-दुव वर्ष के तजुरने में ही यहा के अध्यापकों और छात्रों को भारतीय दृष्टि से निखे इतिहास का पर भारतीय बोन्निक सोचें पर यारधी झ्ताब्दी का संघर्ष एक दल भी भारत के शिक्लित वग में उठ खड़ा हुआ । मदददेव गोविन्द रानाडे की मराठा शक्ति का उदय गोरीशकर दीराचन्द शोभा की मारतीव प्राचीन लिपि माला? (१८६६) रमेश चन्द्र दत का त्रिटिशि भारत का आधिक इतिहास (१६०१) गोविन्द सखाराम सरदेखई की मराठी रिवासत पइला. भाग (१६०१ ) आदि वे पहली इतिया थीं जिन्दोंने इतिहास में स्ववत्र भारतीय विचार के उदय को पहले पहल सूचित किया । १६०५ के स्वदेशी आादोलन के साय-साथ राष्ट्रीय शिक्षा को श्रौर देशी भाषा के विकाश को सखहर श्ाई। आला और सरदेशाई का श्पनी म्वधाओं में अपनी ऐतिहासिक स्वोथ के परिस्थाम दबे करना इस दृष्टि से महत्व का था । बगाल की राष्ट्राय शिक्षा समिति (नेश नल्न कॉसिस झाव एजुकेशन ) ने पइले पहल ऊ ची कसाओ में मारतौय इतिशस को भी एक पाठ्य विषय नियत किया जिसकी नकल दमारे देश की सरकारी युनिवर्सिटियों ने भी की । स्वदेशी श्वान्दोलन के ठमय जुरोप में निर्वातित पर प्रवासी भारतीय देश- मक्कों का एक दल काम करने लगा । इसकी राबनीतिक सरमर्मी भी अरहृतिक [ श्री प्रथ्वीसिंद मेहता ] की स्वोध की पद्धति नन गई जिस पर अन्य विद्वानों ने भो कदम बढ़ाये | रमेश चन्द्र मजूपसदार का अन्य प्राचीन भारत में छामूदिक थीवन ( १६.१८) इस प्रतग में उल्ल खनीय दे । इतिहास के अन्य चत्रों में भी मार तीयों के नव जाणत स्वतन्त्र चिंतन की कलस्वरूप श्रनेक कृतिया पहले विश्व युद्ध के श्रन्त तक प्रकट होती रहीं । प्रफुल चन्द्र राप अजेन्द्रनथ शील श्र नजाल नेशनल कालेब के विचवकुमार सरकार के प्राचीन भारतीय विशान विषयक प्रन्थ उठी कालेब के राघा कुम्नद मुखर्नी का प्राचोन मारतीय जहा भरानी और समुद्रचर्या का इतिदास इक्सिन भारत के इतिहास पर कृष्प्दस्वामी देयंगर का नगाल के इतिहास पर राखाखदास ननली का आर मजेन के के इतिहास पर पदुनाथ सरकार का मराठा इतिहास पर विश्वनाथ काशी- नाथ राबवाडे तथा गोविन्द्राव सरदेखाई का एव बिटिश म्तरत के इतिहास पर बामनदाल बसु का कार्य कचे दर्जे का विश्नवम्मत अष्यवन और स्वतन्त् चिस्‍्तन को लिये हुए का । इतिहास के श्राघार पर नने समाबशास्त् का झमाव खलने लगा था । सन्‌ १६.१४- १६ तक यहा यह विचार जाग चुका था कि मारतीय दृष्टि से खोज शोर अभ्ययन का झायोजन किये बिना इस श्यमाव की पूर्ति न हो सकेगी । गुरुकुल कांगढ़ी के सस्यापक और देशी भाषा में शिद्षा देने के मदन सुधार वे प्रवतंक व्समी अद्धानन्द.. गुर्कुल में ही इस काय को करने की सोबते थे । उनके विचारों श्रोर उनके महान ब्प क्तित्व की प्ररणा उनके भनेक शिष्वों को मिलनी थी । सन्‌ १६१६ के शुरू में गुरुकुल के एक नवस्नासक लय चन्द्र विद्यालकार ने भारतवर्ष में जातीव शिक्ा शोषक एक निनन्व पकाशित किया बिषमें भारतीय टष्टि से कुन स्वोज और श्रष्पयन का श्रायाजन कर वाउ_ मय सृजन का विचार पढले पहल स्पष्ट रूप में रक्सा गया । उठी बे विन्सर स्मिथ का अ्रन्थ झाक्सपड़ हिर्री श्राव इण्डिया प्रकाशित होते हो विनय कुमार सरकार ने न्यूबाक के पोलिटिकल साइनस कश गली ( राजनीति विज्ञान जेमातिक ) में मारत का एक श्रत्र ली इतिहास शौधेक




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