हरि पुरुषजी की बानी | Shri Haripurushaji Ki Bani
श्रेणी : भाषण / Speech, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.6 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित भगवतीलाल विद्याभूषण - Pandit Bhagvatilal Vidyabhusan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ शीहरिपुरुपजी की याद्यी (म)
तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा यहां पर दूर २ से फालणुण
सुद १ से लेकर १२ तक योगाभ्यासी सिद्ध साधु महात्मा
यहां पर श्राविंगे १२ दिन तक खूब मेला रहेगा सेठ ने
वैसाही किया ।
एक समय की बात है कि डीडबाना गांव में स्वामीजीः
थीपत्त इक्त के नीचे बैठे मजन कर रहे थे उनके पास में एक
सेठ की हवेली वन रददीथी सेठ ने हुबम दिया कि पीपली
क्यो काट डालों । क्योकि जड़ो से मकान में हानि होगी
काटने वाले पीपली के पास गये तो स्वामीजी ने पूछा कि.
तुम क्यों श्राये । उन्दोने कद्दा कि पीपत्दी को काट ने की
आज्ञा है ।यह सुन कर स्वामीजी ने कहा कि तुम इसे काटो
मत यह चटेगी नहीं; चह पीपली श्रचतक इतनी दी है यह
एीपली सेठ की हवेली के पश्चिम की तरफ श्रय तक यतेमानहै
जो मनुष्य जाकर दर्शन करते हैं उन के कड़े जन्मों के पाए
मिट जाते है ।
चहां से भागे स्वामीजी नागोर मै जाकर झूता बावडी
एर डेरा किया । उसमें लोगों को भ्रूतों का बहुत ही भय था
दी मी वावडी की तरफ नहीं जातेथे वहां के रहने
चाले लोग
की ही दा हा साधु उस बावटी
५ कि इस मे शर्त हे
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