गीतकार विद्यापति | Geetkar Vidyapati

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Book Image : गीतकार विद्यापति  - Geetkar Vidyapati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्लनहधध भला नि ्पनीपीनटटपीपप्ाप्टाध्टाटा्नपीपपट जप पापा पा जी ्न्टा्ीय्डप को दिया था श्रौर झ्राजकल वह पिंदारह ( दरमंगा ) निवासी रतिकांत चौधरी के पास सुरक्षित है अब्दे लचमशसेन भूपति सिसे वहिश्रहद य क्लिते मास श्रावशसंज्ञके सुनितिधी पत्षेडबलक्ष गुर । ज् ज्र्द है प्रज्ञावान प्रचुराव्वरं. श्रथुतराभोगन्नदीसाठकं | सारण्य॑ ससरोवरब्य विसपीनासानसासीसतः | श्री विद्यापतिशमेंणे सुकबये चाणीरसस्वादयि-- द्वीर श्री शिवरधिंह देव उपतिधास दे शासनमू । 1२11 राजा शिवसिंह श्रौर रानी लखिमादेश ने विद्यापति का अच्छा सम्मान किया । इसी कारण से कवि ने उनको रसिक शिरोमणि रूपनारायण आदि नाम देकर साहित्य में अमर कर दिया । हो सकता है कि मसहाकवि को पदा- वली की रचना की प्रेरणा इन्हीं रसिक दस्पति से मिली हो । विद्यापति राज्य कवि ही नहीं थे वरन्‌ राजा शिवसिंह के अन्तरंग मित्रों में से थे । उन्होंने पदावली म॑ इश्वर से कई स्थानों पर राजा शिवर्सिह के लिये प्राथना तक की है । इससे उनकी मित्रता का श्रनुमान किया जा सकता है । पदावली में श्र रस का आआधिक्य इस वात का प्रमाण है कि राजा शिवर्सिंह रसिक श्र श्रज्ार प्रिय व्यक्ति थे । कहा जाता है कि झ्रपने अभिन्न मित्र की मृत्यु के पश्चात्‌ कृषि में शड्ार रस की कविता करना छोड़ दिया इसी कारण संभवत कवि के अन्तिम ग्रन्थों में श जार का अधिक पुट नहीं राजा शिवसिह की मृत्यु के ३२ वष॑ पश्चात कवि ने अपने प्रिय मित्र को स्वप्न में देखा जिसके विषय में उन्होंने स्वयं इ9 प्रकार लिखा है-- सपन देखल हस सिवर्िंद झुप बतिस बरस पर सामर रूप | बहुत देखल रुरुअन प्राचीन व भेलहूँ हम आयु वि्दीन ऐसा विश्वास किया जाता हे कि स्वप्न में श्रपने किसी प्रिय का देखना था के व पा अल पर कर वि कि व




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