बड़ा जैन ग्रन्थ संग्रह | Bada Jain-granth-sagrh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.04 MB
कुल पष्ठ :
452
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही
रलकरणरड-धाधकाचार-हिन्दों प्ानुवाद । प्
गिरि से यिरो शुद्ध हेऊ गा, जले आग में पावनतर । .
ऐसे मन में विचार रखना, लाकमूढ़ता है प्रियवर ॥ २० ॥
देवमूढ़ता 1 ः
दई देवता की पूजाकर, मन चाहे फल पाऊंगा । '
मेरे होंगे सिद्ध मनारथ, लाभ अनेक उठाऊंगा ॥ _
ऐसी गाशायें मन में रख, जा जन पूजा करता है ।
रागद्दंप भरे देवों को, देवसूढ़ता धघरता है ॥ २१ ॥
गुरुसूढ़ता 1
नहीं छोड़ते गाँठ-परिय्रह, भारंभ के नहिं तजते हैं ।
भवचकों के भूमनेवाले, हिंसा का हो भजते हैं ॥'
साघु सन्त कहलाते तिसख पर, देना इन्हें मान सत्कार 1
है पाखरिडमूढ़ता प्यारी, छेडड़ो इसके करो विचार: ॥२२॥
_.. थभाठ मद 1
शान जाति कुछ पूजा ताकत, ऋद्धि तपस्या भर शरीर ।
इन भाठों का भाध्रय करके, है घपणरड करना मद थीर ॥
मद में था निजधर्मिजनों का, जा जन कर्ता है अपमान ।
चह खुघर्मके मान भंग का, कारण होता है ज्ञान ॥ रद ॥
अगर पाप का हो निराघ तो, और सस्पदा से क्या काम !
अगर पाप क़ा आाधय हो ते, और सम्पदा से क्या काम ॥
मित्रो यदि पहला होगा ते, दुख का उदय नद्दों होगा 1,
यदि डुसरा दोगा तो सम्पद, होने पर भी डुखे होगा ॥२७॥
सम्यग्दशीन की महिमा । क
सम्यग्दर्शन की शुभ सम्पद्, हाती है जिनके भीतर ।
मातंगज हो काई भी है, मददामान्य हैं वे छुधवर ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...