बुद्धचरितम् भाग १ | Buddha charita pt.1

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Buddha charita pt.1 by रामचंद्र दास - Ramchandra Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 2 ) कखघोप ने इन शवरंधाकी का. बा सल्ोक वर्णन किया है 7--पपों हि इंच -पुरूषों अरयाभिभुतों ॥ श्लाडि । खोज करते हुए उन्होंने पामा कि नृच्णा ही सब दुन्खों का फारण हैं । इसलिये सृण्गा की जब सोदने का. उपदेश दियां वो बदामि मदद यो यावस्तेव्स समागता | सण्हाष मूल सनथ उसीररयों व चीरणसुं ॥ ( घर्सपदं २४-४४) बंजाग्स नें भी चासगां को बग्च करने का उपयेक्ष दिंपा है --- निदेग्घवास नोवी जे ससासामास्यिरूपकोन्‌ । संद्सेयाधिपेतों मे भूवों दुन्खसाग्मपेतू ॥ ( नोगवालिष्ट- देन ७ रे है मंगवान खुद को पढ़ी आप रहा हैं. कि इस ब्याधि की शिकिर्सां करें झट जानने का प्रयत्न से करें हि बह कहीं से आई कंसे आई । इसे समझाने के लिये उमस्होंने घायक माइमी का उदाहरण देते हुए कहा-- यदि किसी को विषजुला सीर करो आग बह कहे कि में तीर तथ सक न निकछूवाऊँंगा जय तू यह न मालम हो जायें कि बहू कहाँ से जाया है किसने मारा दें उसंका गोच था सलाम कया हैं तह कितसा लंबा हैं लोदि तो निचुओं उस मोदइस को यह पतला ही नहीं छंगेंगा लौर बह मरें जावेगा । थे लन्य बातों पर विचार करना. ब्यर्ध समझ तृप्णा के अप पर हो मुक्य घक्त मेले थे । उसी को घुननस्म का कारण समसने थे । कुछ लोग कहते पे कि बुद्ध पुनरजस्स को मानते थे किन्तु आत्मा को नहीं मानते थे । शोनों बाते परस्पर विरोधी हैं । लख आरा ही नहीं तब पुनजन्स किसका? इसका उत्तर था हैं कि जथोद दर्शन जो कांप भाग से लेते हैं यह सारा का बोद -दूर्धन मन से. छेता हैं । थे कहते हैं कि मन ससी. अवस्थाल] पूरचगामी हैं सन ही सुख्य हैं । मनुष्य सनोमय है । जब लाइमी मछिल सन से धोला था कम करता है तब बुख उसके पीछे ऐसी तरह न जाता है से गाढी के पहिंये बे के पंरों के पीछें कर ज्ञाते हैं. 1




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