नागानन्दम | Naganandam

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Naganandam by हरजीत सिंह - Harjeet Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटक का कर्ता श्री हष॑ के नाम से तीन नाटक-- र्नावली प्रियदर्शिका तथा ागानन्द्‌ - दो स्तोत्र और छछ फुटकल कविता हमें प्राप्त हुई हैं । तीनों नादक एक ही हाथ की कृतियां हैं । इस पच्च के समर्थन सें मारे पास कई प्रमाण हैं | सब की प्रस्तावना में श्री हप॑ को सिंद्- हस्त कवि बताया गया हें । प्रियदुर्शिका के दो शोक नागानन्द में भी - मिलते हैं और एक शोक रत्नावली में । कई गदयांश भी मिलते जुलते हैं घोर कई स्थितियां भी एक जेसी हैं तीनों नाटकों में भाव रस शर शैली की इतनी समानता है कि एक को दूसरे से लग करना असम्भव है। फिर बद्द कर्ता कौन है ? इस विपय में मम्मट की उक्ति ने संशय उत्पपा कर दिया है जिस से साहित्यकों में मत-भेद है । झ्पने झन्थे काव्य प्रकाश के शारम्भ सें उन्हों ने लिखा है-- काव्य यशसेब्थकृते । कालिदासादीनासिव यशः । श्रीदषदिर्धाविकादीनामिवच घनसू । कहीं कद्दों घावक के स्थान पर बाण का भी नाम है । जिस से पिशल थ्रादि कई विद्वान घावक को श्र हॉल तथा ब्युद्धर श्राद़ि कई समहानुमाव बाण को इन नाटकों का कर्ता मानते हें । अथेकृते ही उनके इस निश्चय का झाघार दे । उन का कहना है कि इन्दों मे लिखकर धन के लिए इन को राजा हष के पास बेच दिया जिस ने झपने सलाम के नीचे प्रकाशित किए । परन्तु ऐसा समकना आन्ति दै । मम्मट को उक्ति तो श्री दष की उदारता और दानशीलता ( १३




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