पिया सदा महान्नव | Paia - sadda - mahannavo
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
58.36 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. हरगोविंद शास्त्री - Pt. Hargovind Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पंति--पकंत्थ न चलाना पा पा अप पिपप पप हक पाइअस शमहण्णवों 1 था नाप भलपा ६१७ (ठाप८्)। चर वि | चर ] नीरस हार की खोज पंख पुं [पांखु पांशु] धूली रन रेख ( है १ २४ पाझ करने वाला तपत्वी ( पं २ १ )।. जीवि वि [ जीविन् ] नीरस आहार से शरीर-निर्वाह करने वाला (ढां 2 १)। गहार वि [ हार ]. लुखा-सूखा आहार करने वाला ( ठा 2 १ ) । पंति खी [ पड़ा क्त ] १ पंक्ति श्रेणी (हैं १ २४ कुमा कप्प १ २ सेना-विशेष जिसमें एक हाथी एक रथ तीन घोड़े और पाँच पदाती हों ऐसी सेना ( पउम 2६ ४ ) | पंति खरी [ दे ] वेणी केश-रचना ( दे ६ २ )न पंतिय खीन [ पडक्ति ] पंक्ति श्रणी सराणि वा सरपं- तियाणि वा. सरसरपंतियाणि वा ( झाचा २ हे हे २)। खी-- पंतियाद्ो ( अणु ) । पंथ पु [ पन्थ पथिन् ] मा रास्ता पंथ॑ किर .दे सत्ता (हे १ ८८) पंथम्मि पहपरिड्भट्ट ( सुपा 22० हैका ५४ प्रासू १७३ ) । पंथ पुं [ पान्थ ] पथिक मुसाफिर ( है १ ३० श्रच्चु ७४ ) | कुट्ण न [ कुट्डन ] मार-पीट कर मुसाफिरों को लूटना ( णया १ १८.)। कोइ पं [ कुट्ट ] वही अर्थ ( विपा १ १--पत्र ११ ) । कोट्टि खी [ कद्टि ] वहीं अर्थ से चोरसेणावई गामवायं वा जाव पंधकोट्ि वा काउं. वच्चति ( णाया १ १८ 0 / पंथग पुं [ पान्थक ] एक जैन सुतति (.णाया . १ ४ घम्म छठी ) | पंथाण देखो पंथ--पन््थ पथिन् पंथमकाणऐं पंथाणंकाऐ ( आाउ ११ ) 1. पंथिअ पुं [ पन्थिक पथिक ] मुसाफिर पान्थ पथिद्य गां एव्थ संधर ( काप्र १४८ महा कुमा णाया . १ चज्ञा ६० १४८ ) । पंथुच्छुदणी खी [ दे ] श्वशुर्द से पहली वार श्रानीत ख्री (दे ६ ३४) । कक पंपुभ वि [ दे ] दीर्घ लम्बा ( दे ६ १२ 3 । पफुल् वि. [ प्रफुल] विकसित ( पिंग.) । पंफुलिभ वि [ दे ] गवेषित जिसकी खेज की गई हो वह (दे ६ १७) । पंस बक [ पांसय् ] मलिन करना । पसेई (मिले ३०४५९ है । पंसण वि [ पाँंसन 1] कलडि्कित करने वाला दूष्ण लगाने वाला ( है १ ७० सुपा इड् ) | श्राचा ) |. कीडिय क्कीलिय वि [ क्रीडित ] जिसके साथ वचपन में पांशु-क्रीडा-की गई हो वह वचपन का दोस्त ( महा सण ) । पिंसाय पुंखी [ पिशाच ] जो रैणु-लिंप्त होने के कारण पिशाच के तुल्य मालूम पड़ता हो वह ( उत १९ ) । सूलिय पु [मूद्लिक ] विद्याघर मनुष्य-विशेष ( राज ) | पंखु पुं [ पशु ] इठार ( है १ २६) । पंख देखो पु ( षड्ू ) । पैस्ुल पुं | दे ] १ कोकिल कोयल २ जार उपपति (दे६ ६६)। ३ वि रुद्घ रोका हुआ ( पड ) । पंखुल पुं [| पांखुल ] १ पुश्वल परख्री-लम्पट प्१० 2६४ ) | २ वि घूलि-युक्त ( गउड.) । पंखुढछा खी. [| पांखुला | कुलटा व्यमिचारिणी खी (कुमा )। . (गा पंसुलिभ वि [ पांखुलित | धूलिययुक्त किया हुभ्मा पंसुलिग्रकंरण ( गउड ) । पंसुलिभा खरी.[ दे पांशुलिका ] पार की हूडी ( पव ३ ) 1 पंसुली स्त्री [ पांखुछी ] कुलटा व्यभिचारिणी सती ( पात्र सुर १४ २ है २ १७४ ) 1 पकंथ देखो पगंथ ( झाचा १ ६ ९ )। पकथग पुं [प्रकन्थक | अश्व-विशेष ( ठा ४ ३--पत्न रब )। का न पकंप पुं [ प्रकम्प ] कम्प कॉपना / ( भाव ४ ) । पकंपण न [ प्रकस्पन ] ऊपर देखो ( सुपा ६४१ )। पंकंपिभ वि [ प्रकस्पित | प्रकम्प-युक्त कौँपा हुआ (व २ ) | पकंपिर वि [ प्रकस्पितू ] कॉपने वाला (उप प् १३३ ) । ी--सी ( रंभा ) । पकड़ देखों पंगड़ | ( औप ) । थे पकड़े वि प्रकृष्ट ] १ प्रक्षयुक्त 2 २ खीचा हुआ (जप ) । पकड़ण न [ प्रकरण | श्राकषण खीचाव (निचू २० ) । पकत्थ सुक [ प्र+- करथू ]. श्लाघा करना प्रशंसा करना | पंकत्थइ ( सुझ १ ४ १ १६. पिं परदे ) 12 कवक-पकड़िज्ञमाण ७ पलपल बन पल पा
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