पिया सदा महान्नव | Paia - sadda - mahannavo
 श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
58.36 MB
                  कुल पष्ठ :  
752
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पंति--पकंत्थ न चलाना पा पा अप पिपप पप हक पाइअस शमहण्णवों 1 था नाप भलपा ६१७ (ठाप८्)। चर वि | चर ] नीरस हार की खोज पंख पुं [पांखु  पांशु] धूली  रन  रेख ( है १  २४ पाझ करने वाला तपत्वी ( पं २  १ )।. जीवि वि [  जीविन् ] नीरस आहार से शरीर-निर्वाह करने वाला (ढां 2 १)। गहार वि [ हार ]. लुखा-सूखा आहार करने वाला ( ठा 2  १ ) । पंति खी [ पड़ा क्त ] १ पंक्ति  श्रेणी (हैं १  २४ कुमा कप्प १ २ सेना-विशेष  जिसमें एक हाथी  एक रथ  तीन घोड़े और पाँच पदाती हों ऐसी सेना ( पउम 2६  ४ ) | पंति खरी [ दे ] वेणी  केश-रचना ( दे ६  २ )न पंतिय खीन [ पडक्ति ] पंक्ति  श्रणी  सराणि वा सरपं- तियाणि वा. सरसरपंतियाणि वा  ( झाचा २  हे  हे २)। खी-- पंतियाद्ो  ( अणु ) । पंथ पु [ पन्थ  पथिन् ] मा  रास्ता  पंथ॑ किर .दे सत्ता  (हे १  ८८)   पंथम्मि पहपरिड्भट्ट  ( सुपा 22० हैका ५४ प्रासू १७३ ) । पंथ पुं [ पान्थ ] पथिक  मुसाफिर ( है १  ३० श्रच्चु ७४ ) |  कुट्ण न [ कुट्डन ] मार-पीट कर   मुसाफिरों को लूटना ( णया १ १८.)। कोइ पं [  कुट्ट ] वही अर्थ ( विपा १  १--पत्र ११ ) । कोट्टि खी [ कद्टि ] वहीं अर्थ से चोरसेणावई  गामवायं वा जाव   पंधकोट्ि वा काउं. वच्चति  ( णाया १  १८ 0 /   पंथग पुं [ पान्थक ] एक जैन सुतति (.णाया . १  ४ घम्म छठी ) | पंथाण देखो पंथ--पन््थ  पथिन्  पंथमकाणऐं पंथाणंकाऐ ( आाउ ११ ) 1. पंथिअ पुं [ पन्थिक  पथिक ] मुसाफिर  पान्थ  पथिद्य गां एव्थ संधर  ( काप्र १४८ महा कुमा णाया . १  चज्ञा ६० १४८ ) । पंथुच्छुदणी खी [ दे ] श्वशुर्द से पहली वार श्रानीत ख्री (दे ६  ३४) । कक पंपुभ वि [ दे ] दीर्घ  लम्बा   ( दे ६  १२ 3 । पफुल् वि. [ प्रफुल] विकसित ( पिंग.) । पंफुलिभ वि [ दे ] गवेषित जिसकी खेज की गई हो वह (दे ६  १७) । पंस बक [ पांसय् ] मलिन करना । पसेई (मिले ३०४५९ है । पंसण वि [ पाँंसन 1] कलडि्कित करने वाला  दूष्ण लगाने वाला ( है १  ७० सुपा इड् ) | श्राचा ) |. कीडिय   क्कीलिय वि [ क्रीडित ] जिसके साथ वचपन में पांशु-क्रीडा-की गई हो वह  वचपन का दोस्त ( महा सण ) ।  पिंसाय पुंखी [ पिशाच ] जो रैणु-लिंप्त होने के कारण पिशाच के तुल्य मालूम पड़ता हो वह ( उत १९ ) । सूलिय पु [मूद्लिक ] विद्याघर  मनुष्य-विशेष ( राज ) | पंखु पुं [ पशु ] इठार ( है १  २६) । पंख देखो पु ( षड्ू ) ।   पैस्ुल पुं | दे ] १ कोकिल  कोयल   २ जार  उपपति (दे६ ६६)। ३ वि  रुद्घ  रोका हुआ ( पड ) । पंखुल पुं [| पांखुल ] १ पुश्वल  परख्री-लम्पट प्१० 2६४ ) | २ वि  घूलि-युक्त ( गउड.) । पंखुढछा खी. [| पांखुला | कुलटा  व्यमिचारिणी खी (कुमा )। . (गा  पंसुलिभ वि [ पांखुलित | धूलिययुक्त किया हुभ्मा पंसुलिग्रकंरण ( गउड ) । पंसुलिभा खरी.[ दे  पांशुलिका ] पार की हूडी ( पव ३ ) 1 पंसुली स्त्री [ पांखुछी ] कुलटा  व्यभिचारिणी सती ( पात्र सुर १४  २ है २  १७४ ) 1 पकंथ देखो पगंथ ( झाचा १  ६  ९ )। पकथग पुं [प्रकन्थक | अश्व-विशेष ( ठा ४  ३--पत्न रब )। का न पकंप पुं [ प्रकम्प ] कम्प  कॉपना / ( भाव ४ ) । पकंपण न [ प्रकस्पन ] ऊपर देखो ( सुपा ६४१ )। पंकंपिभ वि [ प्रकस्पित | प्रकम्प-युक्त  कौँपा हुआ (व २ ) | पकंपिर वि [ प्रकस्पितू ] कॉपने वाला (उप प् १३३ ) । ी--सी ( रंभा ) । पकड़ देखों पंगड़ | ( औप ) । थे पकड़े वि   प्रकृष्ट ] १ प्रक्षयुक्त 2 २ खीचा हुआ (जप ) । पकड़ण न [ प्रकरण | श्राकषण  खीचाव (निचू २० ) । पकत्थ सुक [ प्र+- करथू ]. श्लाघा करना  प्रशंसा करना | पंकत्थइ ( सुझ १  ४  १ १६. पिं परदे ) 12 कवक-पकड़िज्ञमाण ७ पलपल बन पल पा
 
					 
					
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