राजनीतिक षड्यंत्र | Rajnitik Shadyantra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajnitik Shadyantra by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उपेंद्रनाथ बंधोपाध्याय - Upendranath Bandopadhyay

Add Infomation AboutUpendranath Bandopadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द् राजनीतिक-पड यन्त्र । नरक पलप कर था समेर लायों और उसी आफिसमें आकर डर गया । कुछ दिन बाद, देवब्रत 'नवशक्ति' का्यालयमें चला गया । भूपेन भी पूरब बंगाठको सैरको निकल गया । इसलिये 'युगान्तर'के सम्पा- दनका भार मेरे और वारोन्द्रके ही ऊपर था पड़ा । अब क्या था, में भी पाँचवाँ सवार हो गया ! ओह, बड्ालके लिये वे दिन भी केसे ग़ज़बके थे ! आशाके र गीठे नशेसे उस समयके बड्राली छोकरे मस्तसे हो रहे थे । सबके दिलोमिं यही ध्याप गया था, कि “लाख बाघा-विघ्व होवे , पर न हम घबराये गे ।” न मालूम किस देवी स्पशंसे बंगालि- यॉकि सोये इए प्राण जग पड़ थे । न जाने किस अनजाने देशके आलोक ने आकर उनके मनमें छाये हुए युग युगान्तरके अ घेरेको दूर कर दिया था ।. “जोने-मरनेको नहीं चिन्ताही मनमें लाये - गे” | रवोन्द वावबने इस प्रकारका जो चित्र अड्ित किया है, वह उस समयके युवक बंगालियोंका ही चित्र है। सचमुच उस समय हमारे मनमें एक बड़ा भारी विश्वास पैदा हो गया था । हमो सत्य हैं - अडरेजॉंकी गोला-गाली, तोप-बारूद, पलटन और मेशीनगन आदि कुछ भी नहीं, मायाको छाया मात्र हैं ! यह बालूकी भीत, ताशका घर--दमारी एक ही फ,..कमें उड़ जाये- गा । हम अपना लिखा देखकर आपही चॉक उठते थे--जीमें ऐसा समकने लगते थे, मानों देशके प्राण-पुरुष दमारा हाथ सकड़ कर अपने मनकी बाते” लिखवा रहे हैं । ना न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now