मुर्त्तिपूजा - मंडन | Murtipuja Mandan

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Murtipuja Mandan by ब्रह्मदेव - Brahmdev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ यन्मनसानमनतेयेनाइसेंनामतमू । तदेवब्रहमत्वंति द्विनेद॑ य दिदम पासते ॥२॥ यन्चुझपानपश्यत्तियेतचक्ष पिपश्यन्ति । तसढेबब्रह्मचू जिड्टिनेदंय दिदम पा सते ॥३॥ यच्छोन्रेणन शूणा तियेनघ्लोन्रसिदंस्लुतमू । तदृवज्रह्मत्वंविद्विनेद॑थ दिदमुपा सते ॥४॥ यर्प्रणेननप्राणिति येनप्राण:प्रणी यते । त्तदुव्ब्रह्अरचंविट्विनेदं पदिदमुपासते ॥ ४॥ +. दग सब भमाणों से भी परमात्मा फे साकार प्रूजन फा दी विधान प्रतीत होता है 1 इसके खिघाय यह भी जय प्रत्यश्न देखने में माता है कि समप्नि सचब्यापक है सथा निराकार भी है पर जव हमें रोटी आदि चनाने की जरूरत पड़ती है तथघ साकार भरग्नि ही से शोजन पकता है निराकार अस्तिसे कुछ सी कर्म सिद्ध नदी होता इसीतरद परमात्मा जो कि स्चव्यापक तथा निराफार सर साकार दोनों तरह का है उस के थी सापारंश पा




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