ईशदूत ईसा | Iishadoot Iisaa

Iishadoot Iisaa by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इश्दूत इंसा प्रकाश की गति सत्र ह उसका स्पन्दन सवव्यापी है किन्तु हमें उसे देखने के लिये दीप-शिखा की आवश्यकता होती है । जगत का सवेव्यापी इश भी तब तक दृष्टिगोचर नहीं होता जब तक ये महान शक्तिशाली दीपक ये इंशदूत ये उसके सन्देशावाहक और अवतार ये नर-नारायण उसे अपने में प्रतिविम्बित नहीं करत । हम सब को ईश्वर के आस्तित्व में विश्वास है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते उसे नहीं समझ पाते । आत्मप्रकादशा के इस महान संदेशवाहक की जीवन-कथा लीजिये इश्वर की जो उच्चतम भावना तुमने हृदय में घारण की हे उससे उसके चरित्र की तुढना करो ओर तुम्हें प्रतीत होगा कि इन जीवित और जाज्यल्यमान आदशा महापुरुषों के चरित्र की अपेक्षा आपकी भावनाओं का इश्वर अनेकांरशा में हानि है इश्वर के अवतार का चरित्र आपके कल्पित इश्वर की अपेक्षा कहीं अधिक उच्च है । आदर के विग्रह स्वरूप इन महापुरुषों ने इश्वर की साक्षात्‌ उपलब्धि कर अपने महान जीवन का जो आदर जो दृ्टान्त हमारे सम्मुख रखा है इस्वरत्व की उससे उन्च भावना घारण करना असम्भव है । इसलिये यदि कोई इनकी इस्वर के समान अचना करने गे तो इसमें क्या अनौचित्य है? इन नर- नारायणों के चरणाम्बुजों में छुण्ठित हो यदि कोई उनकी भूमि पर अवर्ताण इश्वर के समान पूजा करने लगे तो क्या पाप है? यदि उनका जीवन हमारे इस्वरव्व के उच्चतम आददा से भी उच्च है तो इसमें कया दोष दोष की बात तो दूर रही इंस्वरोपासना की केवल यही एक विधि संभव है । आप कितना ही प्रयत्न करें पुन छे




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