योग साधन की रीति | Yog Sadhan Ki Reeti
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.7 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(रेप )
,'मिलसखका है पूर्ण इशत्मिक उन्नति श्रीर सश्चा श्रानन्द इसी योग
स्राघन दी से प्राप्त दोता है 1
प्ं०--पथम योगसाधघन का चर्णन क्रमशः समकाइयेगा
पुनः उस श्ानन्द श्र मोच्त का चणन की जियेगा ।
उ०--जअइत अच्छा घधम योग साधन का ही चर्णन किया
जाता है पश्चात् मोच्ष का किया जांचेगा ।
योग साधन का वणन
,... योग साधन चहद सार्ग शरीर व्म्यास् है कि-जिससे मनुष्य
ऊंची से ऊंची पदवी पर पहुंचता है । प्रारस्म से ही इस मार्ग
पर चलने से जीव का श्ासन्द बढ़ने लगता है धीरे २ चहद
उन्तति करता इुआए सुख्य श्रानन्द श्रौर प्रलझता को दाखिल
करता है | चारों बेद इसका उपदेश करते हैं. कि जीवात्सा
का उद्धार योग साधन के बिना नददीं दो सकता दे न श्यात्मिक
उन्नति श्रौर ल मोच्त ही,मिल सकती है ।
मद्दाराज पतंजलि लिखते हैं कि जो आनन्द योग साधन
में है उसके सामने संसार फा सुख इतना .भी नहीं कि जितना
पद्दाड़ के सन्मुख चींचटी वा राई का दाना ।
_ . मदर्षि सनुजी सुददस्थ श्ाश्म के लिये थी योग के करने का
उपदेश करते हैं और संन्यास श्राथरम में झपना सारा समय
योग साधम में दी लगाना निश्चित कर्तव्य बतलाते हैं ।
थी कृष्ण जी ने भी बारस्वार योग साधन की शिक्षा सगचदू
गीता में दी है
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