योग साधन की रीति | Yog Sadhan Ki Reeti

Yog Sadhan Ki Reeti by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(रेप ) ,'मिलसखका है पूर्ण इशत्मिक उन्नति श्रीर सश्चा श्रानन्द इसी योग स्राघन दी से प्राप्त दोता है 1 प्ं०--पथम योगसाधघन का चर्णन क्रमशः समकाइयेगा पुनः उस श्ानन्द श्र मोच्त का चणन की जियेगा । उ०--जअइत अच्छा घधम योग साधन का ही चर्णन किया जाता है पश्चात्‌ मोच्ष का किया जांचेगा । योग साधन का वणन ,... योग साधन चहद सार्ग शरीर व्म्यास् है कि-जिससे मनुष्य ऊंची से ऊंची पदवी पर पहुंचता है । प्रारस्म से ही इस मार्ग पर चलने से जीव का श्ासन्द बढ़ने लगता है धीरे २ चहद उन्तति करता इुआए सुख्य श्रानन्द श्रौर प्रलझता को दाखिल करता है | चारों बेद इसका उपदेश करते हैं. कि जीवात्सा का उद्धार योग साधन के बिना नददीं दो सकता दे न श्यात्मिक उन्नति श्रौर ल मोच्त ही,मिल सकती है । मद्दाराज पतंजलि लिखते हैं कि जो आनन्द योग साधन में है उसके सामने संसार फा सुख इतना .भी नहीं कि जितना पद्दाड़ के सन्मुख चींचटी वा राई का दाना । _ . मदर्षि सनुजी सुददस्थ श्ाश्म के लिये थी योग के करने का उपदेश करते हैं और संन्यास श्राथरम में झपना सारा समय योग साधम में दी लगाना निश्चित कर्तव्य बतलाते हैं । थी कृष्ण जी ने भी बारस्वार योग साधन की शिक्षा सगचदू गीता में दी है




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now