राधा | Radha

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Radha  by दाऊदयाल गुप्त - Daudayal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब नहीं उत्साह है तो दृदय मे उल्लास कैसा है जब नदी है भावना दी तो कहो विश्वास कैसा ? पा सका अब तक न में उत्कृष्ट जीवन का फिनारा। छाम्व मुझको शक्ति दो वर्शन करू मैं यश तुम्हारा 1 बन गया निप्माणु जोवन प्राण फूकि कौन उसमें ? घूसता है. जो कसकती चेदना ले मौन उसमें ? यातनाएं चढ़. गईं वे आह वन कर ागईं जो । रुरु न पाई झं घियां तूफान वन कर छागई जो ॥ चल निराशा हो निराशा में रहो जीवन हमारा 1 श्मम्व मुझको शक्ति दो चर्सन करू सैं यश सुम्दार। 11 [ रद 1]




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