हिंदी के आदि शैलीकार सदर मिश्र | Hindi Ke Aadi Shailikar Sadal Mishra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.69 MB
कुल पष्ठ :
319
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राचीन भारतीय मनीषियों ने अपनी कृतियों को ही प्रधानता दी और उनके संदर्भ में अपना परिचय देना आवश्यक नहीं समझा। महाकवि कालिदास से लेकर गोस्वामी तुलसीदास जैसे महान तपस्वियों की जीवन कथा का आधार किवदन्र्तियां या उनकी कृतियों में वर्णित प्रासंगिक उक्तियां ही रही हैं उनकी स्वलिखित आत्मकथा नहीं। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध से ही आधुनिक अथवा गद्यकाल का आरम्भ होता है। आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार हिन्दी साहित्येतिहास के उत्तरमध्य अथवा रीतिकाल की अंतिम सीमा सन् १८४३ ई है (सं. ९०० वि.) उनके मतानुसार हिन्दी साहित्य के आधुनिक अथ॑वा मध्यकाल का आरंभ उक्त ईसवी से ही होता है। लेकिन हिन्दी गद्य के विकास के आरंभिक प्रयासों का मूल्यांकन करने पर यह समय फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना के समय अर्थात् ईसवी १८०० से ही माना जा संकता है। हिन्दी गद्य के प्रारम्भिक चार लेखकों श्री इंशाअल्ला खां मुंशी सदासुख लात लल्लू लाल एवं पं. सदल का उल्लेख हिन्दी साहित्य के सभी इतिहाराकारों ने किया है। इन लेखकों की कृतियों के संबंध में कुछ शोध ग्रंथ भी प्रस्तुत किये गये हैं लेकिन इनके जीवन वृत्त के संबंध में विस्तृत उल्लेख शायद ही कहीं मिलता हैं इस काल के मुख्य आलोचक लेखक पं. सदल मिश्र के विषय में भी स्थिति लगभग यही है। पं. सदल मिश्र के समकालीन सहयोगियों की सीमा निश्चित करना भी एक कठिन कार्य है। पं सदल मिश्र बिहार के निवासी थे और वे कथावाचक के रूप में कलकत्ता आये थे। वहां वे कुछ वर्षों . तक फोर्ट विलियम कालेज से संबद्ध रहे। लल्लू लाल के समकालीन सहयोगी थे इसमें किंचित् संदेह नहीं। जान गिलक्राइस्ट के निर्देशन में संस्कृत के अंथों का खड़ी बोली में उनके अनुवाद कार्य से यह सिद्ध होता है कि वे गिलक्राइस्ट के सहयोगी थे। पं. सदल मिश्र की भांति कंविवर श्री लल्लू लाल भी. कुछ ग्रंथों की रचना जॉन गिलक्राइस्ट के निर्देशन में ही कर रहे थे। इसी प्रकार ईसाई पादरी एवं भारतीय भाषाओं को सीखने की दिशा में अथक प्रयत्न एवं परिश्रम करने वाले प्रथम व्यक्ति विलियम केरी की गणना तत्कालीन महत्वपूर्ण भाषा साधकों में की जा सकती है। यह कहना या प्रमाणित करना कठिन है कि वे पं. सदल मिश्र के सहयोगी थे लेकिन यह तो माना ही जा सकता है कि दोनों ही व्यक्ति समकालीन अनुवादक थे। इस प्रसंग में अनुवाद के सिद्धांत एवं अनुवादक के रूप में पं. सदल मिश्र शीर्षक से तेरहवें अध्याय में विचार कियां गया है और समकालीन अनुवादक के रूप में इनकी कृतियों का मूल्यांकन भी किया गया है।
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